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साध्वान पुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ HIRE
१६६३ में मेरी पूजनीया मातेश्वरी धापकुँवर डोसी संसार का स्वरूप समझाया । और विविध दृष्टान्तों रायला (मेवाड़) में राजकीय चिकित्सालय में के द्वारा हमारे मन में संसार के प्रति विरक्ति की चिकित्सिका थी। जिससे मेरी पूजनीया दादीजी भावना पैदा हुई । गुरुणीजी महाराज ने प्रारम्भिक आदि सपरिवार हम वहाँ रहते थे। पूज्य पिता श्री धार्मिक अध्ययन करवाया। उन्होंने जो हमारे मन पुनमचन्द जी डोसी के स्वर्गवास के पश्चात् माते- में धर्म का बीजवपन किया जिसके फलस्वरूप ही श्वरी ने नौकरी कर ली थी। सन् १९६३ में वर्षा- हम आर्हती दीक्षा ग्रहणकर सके । हमारे में वैराग्य वास के पश्चात् अनेक मुनिराजों का व महासती भावना सुदृढ़ करने के लिए उन्होंने गुरुदेव श्री के वन्द का आगमन रायला में हआ। क्योंकि सभी सान्निध्य में सन् १६६४ का वषावास पापाड़ में पंज्य भगवन्त अजमेर शिखर सम्मेलन में सम्मिलित सम्पन्न किया। इस वर्षावास में गुरुणीजी महाराज होने के लिए वर्षाती नदी की तरह अपने लक्ष्य की के चरणों में बैठकर धार्मिक अध्ययन किया और ओर बढ़ रहे थे । रायला में स्थानकवासी समाज के वर्षावास के पश्चात् गढ़सिवाना में हम दोनों घर नहीं थे। अतः सभी के सेवा करने का सुअवसर भाइयों की दीक्षा पूज्य गुरुदेव श्री के चरणों में हमें प्राप्त हो रहा था।
सम्पन्न हुई। हमारी दीक्षा का महत्वपूर्ण कार्य एक दिन हमारे यहाँ पर परम विदूषी महासती गुरुणीजी महाराज तथा पूजनीया मातेश्वरी के श्री पुष्पवती जी तथा प्रतिभात्ति प्रभावतीजी कारण सानन्द हुआ। यदि गुरुणीजी महाराजमहाराज आदि सती वन्द का शुभागमन हुआ। वे माताजी को तैयार नहीं करते तो हमारी दीक्षा हमारे संसार में बहुत सन्निकट के रिश्तेदार हैं वे होना कठिन था। हमारी माताजी बहुत ही वीरांवहाँ पर नौ दिन विराजी। उनके पावन सान्निध्य गना होने से सारा कार्य निर्विघ्न रूप से हो सका। को पाकर हमारे अन्तर्मानस में धर्माकर प्रस्फटित सन् १९७३ में अजमेर में गुरुदेव श्री का वर्षाहो उठा। उनके स्नेह पूर्ण सद्व्यवहार से हमारा वास हुआ। इस वर्षावास में गुरुणीजी महाराज का रोम-रोम लकित हो उठा। महासतीजी ने वहाँ भी वर्षावास अजमेर में हुआ। इस वर्षावास में भी से विहार किया। हम उनके दर्शन हेत गुलाबपुरा सद्गुरुणी जी महाराज और माताजी महाराज पहुंचे । वहाँ पर पूज्य गुरुदेव श्री भी पधार गए थे। (नानीजी महाराज) हमें बहुत ही हित शिक्षा प्रदान सद्गुरुणी जी महाराज ने गुरुदेव का परिचय करती और ज्ञान-ध्यान की प्रेरणा प्रदान करती। कराया। तथा माताजी महाराज ने कहा मेरे भाई वस्तुतः गुरुणीजी महाराज का उपदेश हमारी जीवन, नाथुलालजी सामर की यह पुत्री है। और रमेश निर्माण की नींव के रूप में रहा है।
और राजेन्द्र ये दोनों इनके सुपूत्र हैं। यह राम उसके पश्चात् सन् १९८०, सन् १९८२ और सन् लक्ष्मण की जोड़ी बहुत ही होनहार हैं। गुरुदेव श्री १६८३ में क्रमशः उदयपुर, जोधपुर और मदनगंजसे और देवेन्द्र मुनिजी से बहुत से ज्ञानवर्द्धक बातें किशनगढ़ में साथ-साथ वर्षावास हुए। इन वर्षासुनने को मिली। उसके पश्चात् अजमेर शिखर वासों में सद्गुरुणी महाराज ने जो हमें शिक्षाएँ सम्मेलन में हम पुनः गुरुदेव श्री के और गुरुणीजी प्रदान की हैं वे हमारे जीवन के लिए थाती हैं। महाराज के दर्शन हेतु पहुंचे । पूज्य गुरुदेव श्री और सद्गुरुणीजी महाराज के गुणों का किन शब्दों गुरुणीजी महाराज अजमेर से विहार कर जब में वर्णन करूं ? शब्दों के बाट इतने हल्के हैं जो कुचेरा पहुँचे । तो हम भी माताजी के साथ वहां पर उनके जीवन को और गुणों को माप नहीं सकते पहुंचे।
हमारे अनघड़ जीवन को उन्होंने घड़ा है। उनके गुरुणीजी महाराज ने हम दोनों भाईयों को जीवन में सरलता, सरसता और पवित्रता है। वे
अनन्त आस्था के सुमन | १५
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