________________
साध्वारत्न पुष्पावती अभिनन्दन ग्रन्थ
मानवीय विकास में नारी का स्थान, महत्व और मूल्यांकन
-प्रो. डा. इन्दिरा जोशी
एम० ए., पी-एच० डी०, डी० लिद०, (अध्यक्ष-हिन्दी विभाग, जोधपुर विश्वविद्यालय जोधपुर)
सृष्टि का व्यापार इतना अद्भुत और बहुरूपी है कि उस पर विचार मात्र करने पर मानवबुद्धि चकरा जाती है । अनन्त, अपार आकाश में न जाने कितने ग्रह, उपग्रह और नक्षत्र चक्कर लगा रहे हैं । जिस विश्व से हम परिचित हैं वह केवल उतना है, जितना कि हमारे सूर्यदेव के चारों ओर परिक्रमा में रत है। कहा जाता है कि ऐसे सूर्यमण्डल अखिल सृष्टि में अनेक हैं। हमारे सूर्यमण्डलीय दिग्मण्डल के बीच, हमारे भू-मण्डल की स्थिति नगण्य-वत् जान पड़ती है । पर हमारे लिए तो वह सर्वाधिक महत्वशाली है। क्योंकि उसी पर तो हमारी स्थिति और अस्तित्व है । पृथ्वी का एक पर्याय है 'धरित्री या धरती' । 'धरती' होने के कारण धारण करना ही उसका धर्म है। इस धरती के जिस विशेष भाग, या जनपद पर हमने सबसे पहले अपनी आँखों खोली हैं, वही हमारे लिए अति पावन एवं पुण्य स्थल है। वही हमारी जन्म-भूमि है जिसकी प्रशस्ति में, पुरातन काल से ही हमारे महाकवियों ने भावभरी एवं ममत्वभरी वन्दनाएँ गाई हैं । संसार की सबसे पुरातन काव्यकृति वेदों में भी, उसकी प्रशंसा में सूक्तों की रचना की गई है। उन्हीं में एक है पृथ्वी-सूक्त । उसके उद्गाता ने गाया है ---"पृथ्वी मेरी माता है, मैं पृथ्वी का पुत्र है।" उसी के पार्थिव कणों से हमारा यह पार्थिव शरीर निर्मित हुआ है। अत: तत्वतः वही हमारी माता है । उसी का एक कौना या उपखण्ड हमारा राष्ट्र या देश है । जन्म-भूमि होने के कारण वह हमारे लिए स्वर्ग से भी बढ़कर गरिमामयी है। उसी के मान-सम्मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों का विसर्जन कर देना ही हमारा पावन कर्त्तव्य है ।
यह धरती न जाने कितनी कोटियों के जंगम जीव-जन्तुओं को जीवन प्रदान करती है और उन्हें धारण करती है। इन जल, थल और नभ में विचरण करने वाले असंख्य छोटे बड़े, जीवधारियों में से एक है 'मानव' । उसे शेष सभी से अधिक विकसित प्राणी माना जाता है। उसे श्रेष्ठतम इसलिए माना गया है क्योंकि उसने विकास एवं प्रगति के पथ पर अभूतपूर्व उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। सभ्यता और संस्कृति
मानवीय विकास में नारी का स्थान, महत्व और मूल्यांकन : डॉ० इन्दिरा जोशी | २८१
"
.
..
..
.....
.......
www.iandi