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साउ
रित्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ)
दिशाएँ सारी धरती हैं
सितारों का प्रभु उजियाला। किन्तु प्राची ही प्रकटाती
दिवाकर सहस्ररश्मि वाला।। सीता चाहती तो अपने लाडले, लव-कुश को उनके पिता राम का विद्रोही बनाकर, प्रतिशोध लेने के लिए आमने-सामने खड़ा कर देती किन्तु आदर्श जननी सीता अनजाने में लव-कुश के द्वारा राम के
ये गये अपमानजनक आचरण के लिए, संतप्त होती है और पूत्रों के अपने पिता से क्षमा याचना करने पर ही, चैन की साँस लेती है। अभयकुमार और वारिषेण जैसे शान्तिप्रिय पुरुषों के जीवननिर्माण में चेलना के योगदान को भी विस्मृत नहीं किया जा सकता है।
आणविक युग की विभीषिका में विश्व-शान्ति की स्थापना की चर्चा, हमारी माननीया स्वर्गीया प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के योगदान के उल्लेख के बिना अधरी है । दृढ इच्छा शक्ति की धनी, इस लौह महिला ने शान्ति की बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति देकर जो अनुकरणीय विस्मयकारी आदर्श प्रस्तुत किया है, उसे आगे आने वाली पीढ़ियाँ सदैव स्मरण रखेंगी। मूर्तिमती करुणा, मदर टेरेसा के, विश्व शान्ति स्थापना के लिए किये गये अथक प्रयास, हमें एक क्षण के लिए यह सोचने को मजबूर कर देते हैं कि इस कम्प्यूटर यग में भी दया और ममता का अकाल नहीं पड़ा है।
आज के भौतिकवादी युग में जब धनमद और बलमद से बौराया व्यक्ति एक दूसरे के सर्वनाश में ही अपनी महत्ता का चरमोत्कर्ष और अपने अस्तित्व की सार्थकता तलाशता है तब साध्वीरत्न श्री पुष्पवती के निर्देशन में महासती श्री चन्द्रावती जी, महासती श्री प्रियदर्शना जी, महासती श्री किरनप्रभा जी, महासती श्री रत्नज्योति जी आदि नारी-रत्नों के, सांसारिक वैभव को ठुकरा कर, शान्ति-स्थापना के लिए किये गये अनवरत प्रयत्न आणविक अस्त्रों के ढेर के नीचे सिसकती हुई विश्व-शान्ति को एक सम्बल प्रदान करते हैं। पैदल गाँव-गाँव जाकर अपनी सुमधुर शीतल वाणी से शान्ति, सहयोग और सदभावना का उद्घोष करती हुई इन साध्वियों के दृढ़ आत्मिक बल को देखकर हमें राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की निम्न पंक्तियाँ सार्थक प्रतीत होती हैं
एक नहीं दो दो मात्रायें नर से भारी नारी
(द्वापर) इन साध्वियों का यह प्रयास निश्चय ही हिंसा के कारण रक्तरंजित वसुन्धरा में पीयूष स्रोत | की तरह प्रवाहित होकर विषमताओं को दूर कर, जीवन को समरसता का दृढ़ आधार प्रदान करेगा
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास रजत नग पगतल में। पीयूष स्रोत सी बहा करो
__ जीवन में सुन्दर समतल में । (कामायनी-"प्रसाद")
नारी की भूमिका : विश्व-शान्ति के संदर्भ में : डॉ० कुमारी मालती जैन | २६६