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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
इसी सन्दर्भ में किरणा देवी जैन का नाम भी इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। मुगल बादशाह अकबर के द्वारा लगाये जाने वाले 'मीना बाजार' को जिसमें शक्ति और वैभव के बल पर नारी की अस्मिता सरेआम लूटी जा रही थी, बन्द कराने का श्रेय इसी वीरांगना को है । कहा जाता है। कि किसी तरह किरणा देवी इस मीना बाजार में पहुँचा दी गई। जब बादशाह की लोलुप दृष्टि रूपसी किरणा पर पड़ी तब बादशाह ने उसे अपनी वासना पूर्ति का साधन बनाना चाहा । किरणा देवी, अपनी प्रत्युत्पन्नमति और उदार साहस का परिचय देते हुए, बादशाह की कटार छीनकर उसी से उसका वध करने को प्रस्तुत हुई । अन्त में इस आश्वासन पर कि भविष्य में बादशाह नारियों के सतीत्व के साथ इस तरह खिलवाड़ नहीं करेगा - किरणा ने उसे जीवनदान दिया । इस प्रकार एक वीर नारी के साहसिक अभियान ने एक पथभ्रष्ट बादशाह को सन्मार्ग की ओर प्रेरित किया ।
उपर्युक्त ऐतिहासिक उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि परिस्थितियों की माँग के अनुरूप, नारी ने सर्वसहा, क्षमाशीला बनकर या अन्याय के दमन के लिए रणचण्डी का रूप धारण कर सदैव शान्ति स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।
विश्व शान्ति में नारी की भूमिका पर यहाँ अन्य दृष्टिकोण से भी विचार करना असंगत न होगा । नारी जाया ही नहीं जननी भी है । जो केवल बच्चे को जन्म देकर ही अपने कर्तव्य से मुक्त नहीं हो जाती अपितु उसे एक सुयोग्य, शान्तिप्रिय नागरिक बनाने का गम्भीर उत्तरदायित्व भी वहन करती है । जैन इतिहास में ऐसी माताओं का नाम अमर है, जिन्होंने पालने में भक्ति और वैराग्य के भजन सुनाकर, अपने नन्हें शिशु को सांसारिक संघर्षों से पृथक रहकर शांति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है ।
" बच्चों का हृदय कोमल थाला है चाहे उसमें कँटीली झाड़ी लगा दो, चाहे फूलों के पौधे ।” ( अजातशत्रु “प्रसाद'' )
आंग्ल भाषा का यह कथन भी विचारणीय है
"Child learns the first lesson of citizenship between the kiss of his mother and caress
of his father".
बच्चा नागरिकता का पहला पाठ माँ की गोद में सीखता है । विश्व शांति के उद्घोषक चौवीस तीर्थंकरों के जीवन-निर्माण में उनकी माताओं के योगदान को स्वीकार करते हुए ही, श्री मानतुंगाचार्य ने निम्न शब्दों में माँ मरुदेवी के प्रति अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित की है
स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान् । नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता ॥ सर्वा दिशा दधति भानि सहस्ररश्मि | प्राच्येव दिग्जनयति स्फुरदंशुजालम् ॥
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जगत के बीच अनेकों मात
प्रसव करती हैं पुत्र जिनेश ।
किसी माँ ने न किया उत्पन्न
आपके सम पर सुत राकेश ॥
२६८ | छठा खण्ड : नारी समाज के विकास में जैन साध्वियों का योगदान
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