________________
श्रीमती शांता बेन मोहनलाल दोशी
सौराष्ट्र की पावन पुण्य भूमि अतीत काल से धर्मपरायण रही है । भगवान अरिष्टनेमि के पावन उपदेशों से वहाँ के जन-जीवन में अहिंसा की उदात्त भावना आज भी लहलहा रही है और कर्मयोगी श्रीकृष्ण के कर्मयोग की स्वर लहरियाँ आज भी झनझना रही हैं। यही कारण है कि उस धरती में श्रीमद् राजचन्द्र जैसे अध्यात्मयोगी पैदा हुए तो राष्ट्रपिता जैसे राष्ट्रनायक पैदा हुए। जहाँ पर सैकड़ों त्यागियों ने जन्म लेकर त्याग और वैराग्य की सुरसरिता प्रवाहित की, उसी पावन पुण्य धरा में श्रीमती शांता बहेन का जन्म हुआ ।
श्रीमती शान्ता बहेन के पिताश्री का नाम सेठ दलपतराय लीलाधर था और मातेश्वरी का नाम मंशा बहेन था । जब आप बहुत ही छोटी थीं तब माता का साया आपके सिर से उठ गया । अतः आपकी नानी उजम बा ने आपमें धार्मिक संस्कारों के बीजारोपण किये ।
साथ सम्पन्न
१६ वर्ष की लघुवय में शांता बहन का पाणिग्रहण मोहनलाल कपूरचन्द दोशी के हुआ । राजकोट सौराष्ट्र से आप व्यवसाय हेतु बम्बई आये । बम्बई में आप शान्ताक्रूज में रहने लगे । मोहनभाई और शान्ताबहेन के सुप्रयास का ही मधुर फल है । शान्ताक्रूज में नव्य भव्य स्थानक का निर्माण हुआ । दोनों पति-पत्नी में धर्म के प्रति अपार निष्ठा रही और गुप्त दान देना अधिक प्रिय रहा। ७० वर्ष की उम्र में भी शान्ता बहेन निरन्तर धार्मिक अभ्यास में संलग्न हैं और उन्होंने उच्चतम परीक्षाएँ भी समुत्तीर्ण की हैं। आपकी धार्मिक भावना को निहारकर ही आपको उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी ने धर्ममाता के रूप में गौरवान्वित किया है ।
श्रीमती शांता बहेन के तीन पुत्र और चार सुपुत्रियाँ हैं । श्रीमान् धनसुखभाई, अरुणभाई, रश्मिकान्त भाई और सुपुत्रियाँ - मधुकान्ता बहेन, ज्योति बहेन, भारती बहेन ये तीनों बाल ब्रह्मचारिणी हैं और सबसे बड़ी बहिन का पाणिग्रहण हो चुका है । आपका पूरा परिवार उपाध्याय श्रीजी, उपाचार्य श्रीजी के प्रति समर्पित है ।
प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन में आपका अपूर्व योगदान रहा है। जो आपकी धार्मिक भावना का पावन प्रतीक है ।
Jain Education International
( १० )
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org