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साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ ।
(१३) प्रियदर्शी, (१४) अर्थदर्शी,
(१५) धर्मदर्शी, (१६) सिद्धार्थ, (१७) तिष्य,
(१८) पुष्प, (१९) वियश्यी, (२०) शिखी,
(२१) बेस्सभू, (२२) ककुसन्ध, (२३) कोणागमन,
(२४) काश्यप, (२५) गौतमबुद्ध । अब हम भगवान् महावीर एवं तथागत बुद्ध के जीवन परिचय का विवेचन करेंगे
भगवान् महावीर एवं बुद्ध दोनों क्षत्रिय थे। भगवान् महावीर की पूज्य माता वैशाली गणतन्त्र के राजा चेटक की पत्री त्रिशला थी। पिता सिद्धार्थ वैशाली के एक उपनगर कण्डग्राम इसीलिए महावीर को वैशालीय भी कहा जाता है।
तथागत बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था जबकि सिद्धार्थ नाम महावीर के पिता का था। बुद्ध के पिता शुद्धोदन भी शाक्यवंशीय राजा थे तथा माता महामाया थीं । तथागत बुद्ध एवं महावीर दोनों ने ही क्षत्रिय कुल में जन्म लेना उपयुक्त समझा था। जैन मान्यता तो यहाँ तक है कि भगवान् महावीर का जन्म पहले ब्राह्मण माता की कुक्षि में हुआ लेकिन बाद में उसे क्षत्रिय माता के यहाँ बदला गया। गर्भ के समय बुद्ध एवं महावीर की माता को स्वप्नदर्शन हआ। जैन परम्परा में १४ एवं १६ स्वप्नों की मान्यता है। बुद्ध की माता को बोधिसत्व के कुक्षि में प्रवेश के स्वप्न पर विचार करने पर इनकी महानता का बोध हो जाता है।
दोनों के जन्म से चमत्कार एवं श्रीवृद्धि हुई। विशिष्ट ज्ञानधारी होते हुए भी शिक्षा के लिए आचार्य के पास गए। दोनों का विवाह हुआ (दिगम्बर परम्परा के अनुसार नहीं)। गौतम बुद्ध का विवाह यशोधरा से, महावीर का यशोदा से। गौतम बुद्ध के राहुल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ तथा भगवान् महावीर को पुत्री । भगवान् बुद्ध ने गृहत्याग २६ वर्ष की अवस्था में किया; महावीर ने ३० वर्ष की अवस्था में । भगवान् बुद्ध ने ६ वर्ष तक कठोर तपस्या की एवं ज्ञान प्रक्रिया में समय लगा; भगवान् महावीर को १२ वर्ष । भगवान् बुद्ध ४५ वर्ष उपदेश देते हुए विचरते रहे; भगवान महावीर ३० वर्ष तक। तथागत बुद्ध का परिनिर्वाण ८० वर्ष की अवस्था में हुआ, महावीर का ७२ वर्ष की अवस्था में हुआ। दोनों के विचरण स्थल समान प्रदेश थे। दोनों ने चतुर्विध संघ की स्थापना की। बुद्ध ने भिक्षुणी संघ की स्थापना बाद में की।
ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान् बुद्ध ने पहले अनिच्छा प्रकट की तत्पश्चात् ब्रह्मा की प्रार्थना स्वीकार कर पंच वर्गीय भिक्षुओं को उपदेश दिया । भगवान् महावीर के प्रथम उपदेश के लिए भी देवताओं ने पृष्ठभूमि तैयार की एवं समोशरण की स्थापना की। दोनों ने लोकभाषा को महत्व दिया। बुद्ध ने मागधी भाषा में एवं महावीर ने अर्धमागधी भाषा में उपदेश दिया।
भगवान् महावीर एवं बुद्ध दोनों के श्रद्धालु उपासक राजा एवं सम्मानित से लेकर दलित वर्ग तक थे। दोनों ने कर्मणा वर्णव्यवस्था का महत्व प्रतिपादन किया। भगवान् बुद्ध एवं महावीर को विविध बाधाओं एवं दुष्परिणामों आदि को भी सहन करना पड़ा । जैसे-भिक्षान्न में बाधा आदि। .
१४८ | चतुर्थ खण्ड : जैन दर्शन, इतिहास और साहित्य
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