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साध्वारत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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तिथियों का वर्णन मिलता है-गर्भ, जन्म, तप, केवलज्ञान और निर्वाण । बौद्ध परम्परा में भी प्रायः समान रूप से बुद्धों के वर्णन मिलते हैं; यथा-बुद्धों का नाम, कितने पूर्व का समय, कल्प, नगर, माता-पिता, स्त्री-पुत्र, गृही-जीवन, गृहत्याग का वाहन, तपश्चर्याकाल, बोधिवृक्ष, अग्रश्रावक, अग्रश्राविका, परिचारिका का नाम, श्रावक सम्मेलन, आयु । भगवान् महावीर के पंचकल्याणकों की तरह तथागत बुद्ध की भी पाँच तिथियों का महत्व है-प्रतिसन्धिग्रहण एवं जन्म, गृहत्याग, बोधिलाभ, धर्मचक्रप्रवर्तन एवं परिनिर्वाण ।
तीर्थकर बनने के संस्कार षोडश कारण अत्यन्त विशुद्ध भावनाओं द्वारा उत्पन्न होते हैं। तीर्थंकरों के सम्बन्ध में विशिष्ट मान्यताएँ हैं जैसे-तीर्थंकर माता का दूध नहीं पीते, उनको गृहस्थावस्था में ही अवधिज्ञान होता है पर उसका प्रयोग नहीं करते, उनके शरीर की अपनी विशेषताएँ होती हैं जैसे -मूंछ दाढ़ी नहीं होती लेकिन शिर पर बाल होते हैं । मनुष्य गति में ही इनकी प्रतिष्ठापना होती है।
___ इसी प्रकार बुद्धत्व प्राप्ति के लिए कुछ मूलभूत आवश्यकताएँ बतलाई गई हैं जिनसे अभिनीहार की सिद्धि होती है। यथा-मनुष्यभव, लिंगसम्प्राप्ति हेतु, शास्ता का दर्शन, प्रव्रज्या, गुण सम्प्राप्ति, अधिकार तथा छन्दता। दस पारमिताओं की पूर्ति । स्वयं गौतम बुद्ध ने बोधिसत्व के रूप में ५५० बार विविध योनियों में जन्म लेकर पारमिताओं की पूर्ति की थी।
पारमिताओं की पूर्ति कर बोधिसत्व, तुसितलोक में देवपुत्र के रूप में जन्म लेते हैं । तत्पश्चात् देवताओं द्वारा याचना किये जाने पर पंचमहाविलोकन करते हैं, अर्थात् काल, द्वीप, देश, कुल, माता तथा उनकी आयु पर विचार करते हैं।
जैन तीर्थंकर (१) श्री ऋषभनाथ, (२) अजितनाथ,
(३) सम्भवनाथ, (४) अभिनन्दननाथ, (५) सुमतिनाथ,
(६) पद्मप्रभ, (७) सुपार्श्वनाथ, (८) चन्द्रप्रभ,
(९) सुविधिनाथ (१०) शीतलनाथ, (११) श्रेयांसनाथ,
(१२) वासुपूज्य, (१३) विमलनाथ, (१४) अनन्तनाथ,
(१५) धर्मनाथ, (१६) शान्तिनाथ, (१७) कुन्थुनाथ,
(१८) अरनाथ, (१६) मल्लिनाथ, (२०) मुनिसुव्रत,
(२१) नमिनाथ, (२२) नेमिनाथ, (२३) पार्श्वनाथ,
(२४) महावीर।
(१) दीपंकर, (४) सुमन, (७) अनोमदर्शी, (१०) पद्मोत्तर,
(२) कोण्डिन्य, (५) रेवत, (८) पद्म, (११) सुमेध,
(३) मंगल, (६) शोभित, (६) नारद, (१२) सुजात,
भगवान महावीर एवं बुद्ध : एक तुलनात्मक अध्ययन : डॉ. विजयकुमार जैन | १४७