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ध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
पाचित्तिय ६३ अधिकरण उक्कोटने सेखिय-१३-१४ संघादिसेस-१० पाचित्तिय--२
संघादिसेस १-सुक्क-विसट्ठियं पाराजिक १, संघादिशेष २ पाचित्तिय ३७ विकालभोजने पाचित्तिय १ मुसावादे पाचित्तिय ११ निस्सग्गिय २०
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पाचित्तिय ५७
णवाणं अधिकरणं-१२-१३ सद्दकरे झंझकरे
कलहकरे (१६) शबलदोष २१
रहत्थकम्मं करेमाणे मैथुन सेवन रात्रिभोजन औद्देशिक मृषावादन औद्देशिक मूलभोजन व कंदभोजन - क्रीत या उधार भोजन ग्रहण करना (६-७) जलप्रवेश व मायास्थानों का सेवन - (१२ व २०) हिंसा करना (१३) मृषावादन (१४) अदत्तादान (१५) सचित्त भूमि पर बैठना (१६-१६) सचित्त जलपान करना पापश्रेणियां अतिक्रम व्यतिक्रम अतिचार
अनाचार (१८) आसादना दोष (१६) गुरु-शिष्य विनय (२०) शबल
Siniliiitta
। । । । । ।
पाराजिक ३, पाचित्तिय ६१ पाचित्तिय १ पाराजिक १ पाचित्तिय १०-११ सेखिय-७४ पाचित्तिय ६२ किसी को मारने के लिए गड्ढा खोदना दुक्कडं उसमें उसके गिर जाने पर दर्द हो थुल्लच्चय उसके मर जाने पर-पाराजिक सेखिय धम्म ५७-७२ गुरु-शिष्य विनय खण्डकारी, चिट्टकारी, सबलकारी कम्मस्सकारी (अंगुत्तर II. P-६५) सवस्त्र । वस्त्र हों-कौशेय, कोजव, शाय, भंग, कंबल, क्षौम । बहुमूल्य वस्त्र ग्रहण निषिद्ध नहीं । तीन संघाटी विहित
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(२१) निर्ग्रन्थ तथा सवस्त्र । वस्त्र हों
तो जंगिय, भंगिय, साणिय, पोतग, खोमिय, तुलकड ।
बहुमूल्य वस्त्र निषेध। (२२) मांस ग्रहण पूर्णतः वजित (२३) ईर्यापथगामी (इसका क्षेत्र
अपेक्षाकृत विस्तृत है)।
मांस ग्रहण त्रिकोटि-परिशुद्ध हो। ईर्यापथगामी (स्थान, गमन, निषद्या और शयन में)
श्रमण आचार मीमांसा : डॉ० भागचन्द जैन | ११७
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