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FA सावारत्नपुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ
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(iv) कई गृहस्थ श्रावक-श्राविका भी धर्मलाभ जिस प्रकार माँ वात्सल्य रस में ओतप्रोत होकर या धर्मदलाली के तीव्र आवेश से प्रेरित होकर अपने अपने बच्चे को स्नेहपूर्वक कोई बात समझाती है, सम्प्रदाय के अनुयायियों या साधु-साध्वियों की छोटे-छोटे उदाहरण और दृष्टान्त देकर अपने कथन वृद्धि की इच्छा-मूर्छा करते हैं और कई अनुचित की पुष्टि करती है और बालक उसे सहज ग्रहण कर कृत्य भी करते हैं। यह भी परिग्रह का एक रूप है। लेता है, इसीप्रकार साध्वीश्री भी माँ भारती के
पष्ठ २६० रूप में भारतीय संस्कृति की उदात्त परम्परा को (३) साध्वीश्री का शास्त्रीय ज्ञान अगाध एवं
विश्व के बालकों के सामने आत्मीयता का स्पर्श लोक जीवन का अनुभव गहरा और यथार्थ है। देकर प्रस्तुत करती हैं। आपके प्रवचनों में स्थानगाँव-गाँव, नगर-नगर विचरण करने से लोक- स्थान पर पौराणिक, आगमिक, आगमेतर, ऐतिहामानस से और लोकभूमि से आपका जीवन्त सम्पर्क सिक, वैज्ञानिक प्रेरक प्रसंग, रोचक दृष्टान्त, अनेक है। इस कारण आपके प्रवधानों में जहाँ एक ओर कथाएं, महापुरुषों के जीवन प्रसंग, साहित्यकारों शास्त्रीय वैभव है वहाँ दूसरी ओर लोकगन्ध की और वैज्ञानिकों के रोचक अनुभव विषय की गम्भीमधुर महक है। विषय प्रतिपादन में जैन परम्परा
रता में सरलता का रंग और हृदय का सारल्य से संबद्ध होकर भी आप भारतीय एवं पाश्चात्य
घोलते चलते हैं। कहीं महावीर और बुद्ध की बहमुखी विचारधाराओं का यथा-स्थान उल्लेख
करुणा, रंतिदेव का त्याग, महात्मा गाँधी की सत्यकरती चलती हैं । आपके प्रवचनों में जहाँ एक ओर
निष्ठा, टालस्टाय का शान्ति-संदेश, बन्ड रसेल आचारांग, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, सूत्रकृतांग,
का इतिहास-बोध, रामानुज का भक्ति भाव, रामभगवती सूत्र, ज्ञातासूत्र आदि जैन आगमों के उद्ध
तीर्थ का लोकानुभव प्रतिविम्बित हैं। तो कहीं रण हैं वहीं रामायण, महाभारत, श्रीमद्भागवत,
जीवन और समाज के साधारण भाई-बहिनों के गीता, योगवाशिष्ठ, चाणक्यनीति, योगशास्त्र. जीवन-प्रसंग हैं जो अपनी साधरणता में असाधारछान्दोग्य उपनिषद्, मार्कण्डेय पुराण, दीर्घनिकाय णता छिपाये हुए हैं । इस संदर्भ में मदनबाई पारख धम्मपद आदि अनेक ग्रन्थ उद्धत हैं। यही नहीं. का उदाहरण उल्लेखनीय है। लोक-संस्कृति और लोक-जीवन को व्याख्यायित
(५) साध्वी श्री का कक्ष्य जितना समृद्ध है करने वाले संत कबीर, महात्मा तुलसीदास, संत -
त उतना ही समृद्ध आपका प्रवचन-शिल्प है। आपकी तुकाराम, भक्त हरिदास आदि अनेक लोक कवियों
__भाषा परिमार्जित और परिष्कृत है। संस्कृत की एवं भक्त कवियों के अनुभूतिप्रवण पद और दोहे
तत्सम शब्दाबली का बाहुल्य होने पर भी वह अभीष्ट तथ्य को संपुष्ट करने के लिए जगह-जगह
क्लिष्ट नहीं है क्योंकि आप जो कुछ कहती हैं वह अपनी बहुरंगी छटा बिखेरते चलते हैं । इस वैविध्य
मस्तिष्क से सोचकर नहीं वरन हृदय के कारण आपके प्रवचन पढ़ते समय समग्र मानवता
होकर । इसीलिए उसमें शास्त्रीयता का पुट होते एवं विश्व साहित्य की भावात्मक एकता का बोध
हुए भी वह जनपद की आबोहवा से सिक्त है। विविध होता चलता है।
भाषाओं का ज्ञान होने से आप यथाप्रसंग संस्कृत, (४) साध्वी जी गहन आगमिक एवं आगमेतर प्राकृत, राजस्थानी, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी ज्ञान होते हए भी अपने कथ्य को जटिल और आदि भाषाओं के शब्दों, पदों, कहावतों, मुहावरों बोझिल नहीं बनाती हैं । गम्भीर विषय को सहज, आदि का प्रयोग करती चलती हैं। ये प्रयोग अंगूठी सरल बनाकर प्रस्तुत करने में आप सिद्धहस्त हैं। में जड़े हुए नगीने की भाँति प्रतीत होते हैं।
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साध्वी रत्न श्री पुष्पवतीजी की प्रवचन शैली | २५३
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