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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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वैज्ञानिक युग है, यही कारण है कि आज का मानव हैं। आज मानव के तन की दूरी कम हो गई है। विज्ञान के परीक्षण प्रस्तर पर प्रत्येक वस्तु को कसने लाखों मील की दूरी भी आज ऐसी प्रतीत होती है के पश्चात् उसे सही मानता है। जीवन का कोई कि वह घर का ही आँगन है । आज अन्धकार को भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिस पर विज्ञान का प्रभाव दूर करने के लिए विद्य त का आलोक है, पसीना न हो । खाने-पीने, उठने-बैठने में सर्वत्र विज्ञान की सुखाने के लिये पंखा है, भोजन पकाने के लिए गैस चहल-पहल दिखलाई देती है। आज मानव की है, सर्दी से बचने के लिये हीटर है तो गर्मी से बचने वत्तियों का अध्ययन भी विज्ञान की दृष्टि से किया के लिए कूलर है । यह है भौतिक विज्ञान की देन जाने लगा है । मूर्धन्य वैज्ञानिक विज्ञान के आलोक तो जीवन विज्ञान की देन है कि इस विराट विश्व में आत्मा के सम्बन्ध में चिन्तन कर रहे हैं। यह में जितनी भी आत्माएं हैं, वे मेरी आत्मा के समान सत्य है कि विज्ञान एक शक्ति है वह अच्छी भी हो हैं । इसलिए मित्ती मे सव्व भूएसु का स्वर उसने सकती है और बुरी भी। वह विनाश का प्रलयंकारी बलन्द किया। अध्यात्म विज्ञान जीवन जीने की दृश्य भी उपस्थित कर सकती है। जो नित्य नई नई दृष्टि देता है। यदि भौतिक विज्ञान का अध्यात्म सुख-सुविधाओं का सृजन कर वरदान रूप प्रस्तुत विज्ञान के साथ सुमेल हो जाय तो स्नेह और सद्कर सकती है। रेडियो, टेलीविजन, विद्य त, भावना की सूर-सरिता जन-जन के अन्तर्मानस में चिकित्सा और कृषि आदि के सम्बन्ध में विज्ञान ने सहज रूप से प्रवाहित हो सकती है । मानव जाति पर जो उपकार किया है, वह किससे छुपा हुआ है ? आज मानव अनन्त आकाश में पक्षी ।
एक दिन नारी जीवन पर विचार-चर्चा करते की तरह उड़ान भर रहा है, सागर में मछली की
पर रेल और कार के
हए आपने कहा-कापयूशियस जो चीन का महान्
दार्शनिक था उसने नारी को संसार का सार कहा द्वारा सरपट दौड़ रहा है । यह है विज्ञान का चम
है। पाश्चात्य चिन्तक कोली ने लिखा है नारी त्कार । विज्ञान का सदुपयोग और दुरुपयोग करना
प्रकृति की एक मधुर भूल है । तो महान चिन्तक मानव की बुद्धि पर निर्भर है । विज्ञान का धर्म के
शेक्सपियर ने नारी को पुरुष की दुर्बलता कहा है। साथ समन्वय होगा तो वह कल्याणकारी रूप प्रस्तुत
भारत के ऋषियों ने नारी की महिमा और गरिमा कर सकेगा।
का अंकन करते हुए लिखा कि जिस घर में नारी प्रत्येक वस्तु के दो पहलू हैं उसका एक पहलू की पजा होती है वहाँ देवता वास करते हैं “यत्र शुभ है तो दूसरा पहलू अशुभ है। एक पहलू सत्
नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता ।
। है और दूसरा असत् है ? विज्ञान शुभ भी है
टोपी और मानव भी हैं। भारतीय साहित्य में नारी के दोनों रूप है। वह अमृत भी है तो हलाहल जहर भी है । आवश्य- कहीं पर नारी की निन्दा भी की है और उसे कता है उसके विचारपूर्वक उपयोग की। विज्ञान के नरक का द्वार भी बतलाया है । यह नारी का अशुभ द्वारा मानव नित्य नये रहस्यों का पता लगा रहा पक्ष है। जबकि नारी तप और त्याग की एक है । वह चन्द्रलोक, मंगललोक और शुक्रलोक की अद्भुत प्रतिमा है। वह लक्ष्मी है। सरस्वती है यात्रा के लिए सन्नद्ध है । सागर की अतल गहराई और दुर्गा भी है । वह घर की प्रतिष्ठा है समाज का
में पहुँचकर उसने वैज्ञानिक साधनों से ऐसे रहस्य सम्मान है और राष्ट्र का हृदय है। उसने अपनी | प्रस्तुत किये हैं, जो आज तक रहस्यमय बने हुए थे। प्रतापपूर्ण प्रतिभा और शील व सेवा से जो आदर्श
नभ, जल और थल तीनों पर उसके चरण गतिशील उपस्थित किये हैं वे उच्चतम आदर्श भारतीय
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स्फुट विचार | २३५