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'साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
स्फुट विचार
शिक्षा
बिना
मदनगंज के विद्यालय में प्रवचन करते हुए आपने कहा--जीवन के साथ शिक्षा का वही सम्बन्ध है, जैसा कि शरीर के साथ प्राणशक्ति का । शिक्षा के जीवन का मूल्य नहीं । शिक्षा से ही जीवन में चमक और दमक आती है । मानव जाति ने जो आज के दिन तक विकास किया है उसका मूल शिक्षा है। मानव की शिक्षाका प्रारम्भ सर्वप्रथम घर होता है । उसके पश्चात् विद्यालय से । जैन, बौद्ध और वैदिक परम्परा के ग्रन्थ इस बात के साक्ष्य हैं कि अतीत काल में यहाँ पर गुरुकुलों में अध्ययन होता था । नालन्दा विश्व विद्यालय एक ऐसा विश्व विद्यालय रहा, जहाँ पर चीन, जापान, ईरान और मध्य एशिया के अन्य भागों से विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे और अध्ययन कर अपने जीवन को धन्य बनाते थे ।
आज जिस प्रकार के जीवन मूल्य परिवर्तित हो चुके हैं तो शिक्षा के मूल्य भी परिवर्तित हो चुके हैं । प्राचीनकाल में शिक्षा का आधार धर्म और आध्यात्म था । पर आधुनिक शिक्षा का आधार विज्ञान और राजनीति है । प्राचीन काल में शिक्षा का आदर्श था । बंधनों से विमुक्ति तो आज शिक्षा का आदर्श है स्वार्थों की नियुक्ति । पहले शिक्षक कर्तव्यप्रधान थे तो आज शिक्षकों में भी द्रौपदी के चीर की तरह अधिकार लिप्सा बढ़ रही है । प्राचीन युग के छात्रों में विवेक और अनुशासन की प्रमुखता थी तो आज छात्रों में उद्दण्डता का प्राधान्य है । वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन राष्ट्र के निर्माण में नहीं अपितु राष्ट्र के विनाश के लिये कर रहे हैं । पहले विद्यार्थी और अध्यापकों में स्नेह और सहानुभूति का प्राधान्य था तो आज अविश्वास का बोलबाला है | यही है संघर्ष का मूल कारण ।
महान विचारक वर्क ने कहा- शिक्षा पुस्तकों का ढेर नहीं है अपितु विश्व के साथ, मानवों के
२३४ | तृतीय खण्ड : कृतित्त्व दर्शन
साथ ओर जीवन के साथ तादात्म्य बुद्धि है । एडिसन का मन्तव्य है शिक्षा मानव जीवन के लिए उसी प्रकार है, जैसे संगमरमर के पत्थर के लिए शिल्पकला । महाकवि निराला ने स्पष्ट शब्दों में कहा- संसार में जितने प्रकार की प्राप्तियाँ हैं, शिक्षा उन सभी से बढ़कर है । शिक्षा-जीवन वृक्ष का बीज है । शिक्षा जीवन को स्वावलम्बी बनाती है । जीवन को स्वाश्रित बनाती है । आज सर्वतन्त्र स्वतन्त्र भारत के समक्ष दो मुख्य समस्याएँ हैं । एक शिक्षा की और दूसरी रक्षा की । दस-बीस लाख सैनिक रक्षा की समस्या को हल कर सकते हैं किन्तु अज्ञान के गहन अन्धकार को नष्ट करने के लिए उससे अधिक प्रयत्न की आवश्यकता है । जिस राष्ट्र की प्रजा अधिक सुशिक्षित होगी, वह राष्ट्र उतना ही प्रगतिशील होगा क्योंकि जीवन विकास का आधार सुसंस्कार जीवन को सुसंस्कारित बनाने का कार्य है शिक्षा का । शिक्षा के साथ यदि धर्म का सुमेल होगा तो शिक्षा वरदान रूप होगी । धर्म शून्य वैज्ञानिक शिक्षा भी विनाश का कारण है न विकास का । शिक्षा हमारे मन को विशाल बनाएँ, हृदय को विराट् बनाए और हमारे आचरण को पवित्र करे । शिक्षा केवल विविध जानकारियों का ढेर नहीं है अपितु निर्मल जीवन जीने की प्रेरणा है । एतदर्थ ही राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा है
सबसे प्रथम कर्त्तव्य है शिक्षा बढाना देश में, शिक्षा बिना ही पड रहे हैं आज हम सब क्लेश में । शिक्षा बिना कोई कभी बनता नहीं सत्पात्र है, शिक्षा बिना कल्याण की आशा दुराशा मात्र है ।
जीवन और विज्ञान
एक बार चिन्तन गोष्ठी में जीवन और विज्ञान के सम्बन्ध में विचार चर्चाएँ चल रही थीं, आपने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा-- आज का युग
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