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नन्दन ग्रन्य
भी खूब कहो। तुम मेरे कारण हो तो इतने ऊँ उसके हो । फिर मुझे ही कहते हो कि तुम मेरे कारण सैर कर रही हो । यह कहाँ का न्याय है ।
पतंग उड़ाने वाले ने कहा- आप आपस में विवाद न करें। एक-दूसरे के सहयोग के कारण ही आप दोनों ऊँचे उठ सके हो । यदि दोनों ने परस्पर विवाद किया तो दोनों का ही पतन निश्चित है ।
पत्ते टहनी से टूटकर नीचे गिर रहे थे । उन्होंने पवन को उपालम्भ देते हुए कहा – तुम भी बड़े विचित्र प्रकृति के धनी हो । बाल्यकाल में तुमने हमें प्यार से सहलाया था, युवावस्था में हमारे साथ कीड़ा को थी और अब वृद्धावस्था में जीवनदान देने के स्थान पर हमें नीचे गिरा रहे हो !
पवन ने कहा- संसार की यही रीति है । जब स्वयं में शक्ति होती है तो प्रतिकूल स्थिति भी अनुकूल लगती है । शक्तिहीन व्यक्ति प्रेम से सहलाने पर भो पीड़ित हो जाता है । जिनमें शक्ति का अभाव है वे मूल से चिपक कर नहीं रह सकते ।
7] वाणी की चोट तन न पर लगकर हृदय पर लगती है । वह चोट इतनी गहरी होती है कि यकायक मिटती नहीं । हाँ, यदि कोई अपराध स्वीकार कर ले तो उसका दर्द कम हो जाता है ।
अपने ही मुंह से अपनी प्रशंसा शोभास्पद नहीं है । हमें दूसरों की प्रशंसा करने का अधिकार है किन्तु दूसरों की निन्दा करने का अधिकार नहीं है । स्वयं के दुष्कृत्यों की निन्दा करना पाप मुक्ति का उपाय है जबकि दूसरों की निन्दा करना पाप उपार्जन का साधन है ।
] भाषा चाहे कितनी भी मुहावरेदार प्रभावपूर्ण और लच्छेदार क्यों न हो ! पर उसका असर तब तक नहीं होता जब तक उसमें विचारों की मौलिकता न हो। क्या कभी बाह्य शारीरिक सौन्दर्य प्रसाधनों से शारीरिक सौन्दर्य की वृद्धि हो सकती है ?
वास्तविक सौन्दर्य के अभाव में वह कृत्रिम सोन्दर्य केवल उपहास का पात्र बनता है |
धर्म के नाम पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने वाले मायाचार में लिप्त हैं । सत्ता और शक्ति के अत्याचार में मशगूल हैं ।
सहारे जीने वाले
व्यवस्था और जन सेवा की आड़ में पलने वाले भ्रष्टाचार में आकण्ठ डूबे हैं ।
वाले
धन, यौवन की वासना का खुला खेल रचने के दलदल में फंसे दुराचार हैं । हुए [] जिस मानव के आवार और विचार शुद्ध नहीं होते वह किसी भी जाति का क्यों न हो, वह काफिर है ।
ग्रामोफोन रिकार्ड में संगीत की मधुर ध्वनि होती है, तिलों में तेल होता है, दूध में घृत होता है। वैसे ही जीवन में सद्गुण होने चाहिए, तभी उसकी कीमत है ।
पाल की सहायता से नौका और धर्म की सहायता से मानव पार हो जाता है ।
D पानी के विना मछली दुःख पाती है वैसे ही मानव ज्ञान के बिना दुखी होता है ।
[] चांदनी के दिव्य आलोक में ताजमहल चमक उठता है वैसे ही स्वप्रकाश से जीवन आलोकित होता है ।
1] प्रेम ही प्रसन्नता में परिणत होता है ।
साबुन से कपड़ा धोया जाता है उससे रंगा नहीं जाता। रंग से कपड़ा रंगा जाता है, धोया नहीं जाता। वैसे ही साधना से अन्तःकरण शुद्ध होता है और शुद्ध अन्तःकरण में ज्ञान प्रदीप्त होता है ।
तलवार की धार की तरह बुद्धि तीक्ष्ण होनी चाहिए। जिससे ज्ञान उपलब्ध हो सके ।
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चिन्तन के सूत्र : जीवन की गहन अनुभूति २३१