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(साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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बबूल ने कहा-मैं फूल कहाँ से लाऊँ ? जिसके तो मिर्ची उसमें से तीखा रस लेती है। गुलाब पास जो वस्तु होती है उसी से तो वह स्वागत केतकी केवड़ा के पुष्प उसमें से सौरभ लेते हैं तो करता है।
प्याज और लहसुन उसमें से दुर्गन्ध ग्रहण करते हैं । यदि वस्त्र पर कीचड़ या अन्य किसी वस्तु कितनी ही वस्तुएँ स्वयं के घर में शोभा पाती का दाग लग गया है तो उसकी उपेक्षा न की जाए हैं। घर का परित्याग करने पर उनकी किंचित्त मात्र शीघ्र धोकर उस दाग को मिटा देना चाहिये । यदि भी कद्र नहीं रहती। जैसे मुंह में दांत की शोभा जरा-सी उपेक्षा की गयी तो वह दाग सदा के लिए होती हैं और सिर पर केश की और हाथ में नाखुन अपना स्थान बना लेगा वैसे ही पापकृत्य का दाग की जब वे स्वस्थान से भ्रष्ट हो जाते हैं तो कहीं पर लगने पर उसी क्षण आलोचना और प्रायश्चित्त कर भी उनकी कद्र नहीं होती। शुद्धिकरण कर लेना चाहिये । मैं बाद में प्रायश्चित्त कितनी ही वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिनकी स्वघर कर लूगा इस प्रकार उपेक्षा करने से वह दोष स्थायी में पूछ नहीं होती किन्तु दूसरे स्थान पर जाते ही हो जाता है। ऐसे कार्यों के लिए भगवान महावीर उनकी गौरव-गरिमा बढ़ जाती है जैसे हीरे, पन्ने, ने कहा है-समयं गोयम ! मा पमायए। एक क्षण माणिक, मोती। जब तक खदान में पड़े रहते हैं मात्र का भी प्रमाद न करो।
तब तक उन्हें कोई पूछता ही नहीं है पर जब वे हे ! युवक ! तू भारत का भाग्य-विधाता स्वस्थान छोड़कर जौहरी के पास पहुँचते हैं तो है । आदर्शों के प्रति तेरे मन में गहरी आस्था होनी उनका मूल्य बढ़ जाता है। चाहिए। तुझ पूर्ण कर्तव्यनिष्ठ होना चाहिए। कितनी ही वस्तुएँ ऐसी होती हैं जो अपने स्थान दिग्भ्रान्त मानव की तरह नहीं।
पर भी शोभा पाती हैं और स्वस्थान छोडने पर भी परिष्कार से वस्तु में निखार आ सकता है
उनकी महत्ता न्यून नहीं होती। फूल टहनी पर भी पर प्रकृति में परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
शोभा पाता है और टहनी से पृथक होकर भी वह काष्ठ शिल्पी रंदे से काष्ठ को चित्ताकर्षक बना मानव का शृंगार बन जाता है। सकता है किन्तु चन्दन के रूप में उसे बदल नहीं मानव को इस प्रकार का कार्य करना सकता।
चाहिये जिस कार्य के करने के पश्चात पश्चात्ताप न जिन साधकों का आन्तरिक जीवन सबल हो। इस प्रकार बोलना चाहिये जो स्वयं को नहीं होता वे अनुकूल और प्रतिकूल दोनों ही परि- आनन्दित करे और दूसरों को भी। जिस प्रवृत्ति से स्थितियों से प्रभावित हो जाते हैं। अनुकूल परि- दूसरों के अन्तर्मानस में क्लैश पैदा होता हो उस स्थिति उनमें अहंकार पैदा करती है तो प्रतिकुल प्रकार के कार्य न करना ही श्रेयस्कर है। परिस्थिति उनमें क्रोध को उभारती है। जिनका गहराई से चिन्तन के पश्चात् जो शब्द स्वास्थ्य दुर्बल होता है उन्हें जरा-सी ठण्डी हवा निकलते हैं वे मूल्यवान होते हैं । हीरे-पन्ने, माणिकलगी नहीं कि जुखाम हो जाता है और जरा-सी मोती, रत्न अत्यधिक अन्वेषणा के पश्चात् ही प्राप्त गर्म हवा से लू लग जाती है।
होते हैं इसीलिए उनका महत्व है। ] व्यक्ति में जितनी योग्यता होगी उतनी रबर ज्यों-ज्यों खींचा जाता है त्यों-त्यों और वैसी वस्तु वह ग्रहण कर सकेगा। पृथ्वी सर्व- वह बढ़ता तो जाता है पर वह कमजोर हो जाता रसा है। अंगूर का पौधा उसमें से मधुर रस ग्रहण है। खींचा-तानी से वस्तु बढ़ सकती है पर जो करता है, निम्बू उसमें से खट्टा रस ग्रहण करता है, उसमें सामर्थ्य होता है वह नष्ट हो जाता है।
चिन्तन के सूत्र : जीवन की गहन अनुभूति २२७
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