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साध्वारत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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नहीं है। यों तो घर में सभी मेरे से बड़े हैं। सभी की बात महत्तरागारेणं होगी तो फिर किसी भी नियम का पालन नहीं हो सकेगा।
दादाजी के पास इसका कोई उत्तर नहीं था। वे सुन्दरि की जमकर परीक्षा करना चाहते थे । वे जानना चाहते थे कि कहीं इसका वैराग्य कच्चा तो नहीं है। यदि कच्चा वैराग्य होगा तो उपसर्ग आते ही उसका रंग अपने आप फीका पड़ जाएगा।
सुन्दरि को तीन दिन तक भोजन नहीं दिया गया । उसे यही कहा गया कि तू अपने हाथ से भोजन बनाकर स्वयं भी खाओ और हमें भो खिलाओ। तोन दिन तक भू वो रहने पर भी उसने सचित्त वस्तु के स्पर्श के नियम को नहीं तोड़ा ।
घर में प्रतिदिन बर्तन मांजे जाते थे और वह धोवन पानी एक मटकी में छानकर प्रतिदिन रखा जाता था। जब से सुन्दरि ने दोक्षा को बात कहो तब से धोवन पानी घर में रखना बन्द कर दिया। भीषण ग्रीष्म ऋतु में पानी के अभाव में गला सूखता था । सून्दार को यह प्रेरणा दो जाती कि तू कच्चे पानी क उपयोग कर । किन्तु नियम लेने के कारण वह अपने नियम में दृढ़ रहो। एक बार भो कच्चे पानी का उपयोग नहीं किया। तीन दिन की परीक्षा में सुन्दरी सफल रही।
सुन्दरि प्रारम्भ से ही किसी का जूठा भोजन नहीं खाती थी और न दूसरे को वह जूठा खिलाती थी। उसकी परीक्षा चल रही थी। यह कितनी समभाव में रहती है। कहीं मन के विपरीत होने बाहर तो नहीं हो जाती। अतः सन्दरि जब भोजन के लिए दादाजो के पास बैठती तो दादाजी ने परीक्षा के लिए अपना जूठा भोजन उसकी थाली में डाल दिया। सुन्दरि ने बिना ननुनच किये वह भोजन खा लिया। उसके चेहरे पर किंचित मात्र भी क्रोध की रेखा नहीं उतरी।
दादाजी के संकेत से एक दिन सुन्दरि जब भोजन करते बैठी तो उसे भोजन इस तरह से परोसा गया जैसे किसी भिखारी या कुत्त को देते हैं । दादाजी दूर बैठकर देख रहे थे कि यह बड़ी स्वाभिमानिनी है । दस बार मनुहार करने पर यह कोई वस्तु लेती है। अब देखें कि तिरस्कार करने पर इसे क्रोध तो नहीं आता है न ! मान का सर्प फुत्कारें मारकर खड़ा तो नहीं होता है न ! पर सुन्दरि पक्की गुरुणी की चेली थी। जिनकी शिक्षा ने उसके क्रोध को शान्त कर दिया था। अपमान के जहरीले घंट को पीकर भी वह मुस्कराती रहती थी। जब दादाजी ने देखा कि इसका वैराग्य-रंग गहरा है तो उन्होंने प्रतिकूल परीषह देना छोड़ दिया। किन्तु दादाजी के द्वारा जब परीक्षा की गई तो अन्य अभिभावक गण भी चाहते थे कि हम भी इसे परीक्षण प्रस्तर पर कसें ।
ताले में बन्द दादी जी और चाचा जी आदि चाहते थे कि एक बार इसे कमरे में बन्द कर दें। तीन-चार दिन तक कमरे में बन्द पड़ी रहेगी तो अपने आप वैराग्य मिट जायेगा। सुन्दरि को इस योजना का पता लग गया । वह सतत् सावधान रहती। उसने स्वयं ने कई बार कुन्दे को ताला लगा दिया जिससे कि कुन्दा बन्द न हो और उस पर ताला लगाने की योजना मूर्त रूप न ले सके ।
दयावत लेने के कारण सुन्दरि किसी भी सचित्त वस्तु का स्पर्श नहीं करती थी। उसे चिढ़ाने के लिए चाचा और भूआ आदि सुन्दरि पर सचित्त सब्जी आदि फेंकते और किलकारियाँ करते कि सुन्दरि महाराज के संगठा हो गया । पर सुन्दरि शान्तमुद्रा में वह सारा दृश्य देखती और मुस्करा देती। चाचा
एक बूद, जो गंगा बन गई : साध्वी प्रियदर्शना | १७६
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