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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ ill
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व्यक्तित्व की लहरें विशुद्ध श्वेत वस्त्रों में झांकता हुआ एक भव्य सुदर्शन व्यक्तित्व, जो आदिम युग की प्रथम साध्वी ब्राह्मी की पावन स्मृति को साकार करता है तो श्रमण भगवान महावीर की प्रथम शिष्या चन्दना का प्रतिनिधि स्वरूप बनकर उभर आता है।
परिपार्श्व में फैले उज्ज्वल-समुज्ज्वल आभा मण्डल को निहार कर दर्शक आनन्द के महासागर में अवगाहन करने लगता है। और जिसका चुम्बकीय आकर्षण मानव मन को अध्यात्म धार से जोड़ देता है।
जिसकी विमल वाणी को सुनने के लिए श्रोताओं के कान ललकते हैं। जिसकी सुनहरी छवि को निहारने के लिए दर्शकों के नेत्र तरसते हैं । जो आत्मविश्वास, साहस, स्नेह और सद्भावना की साकार प्रतिमा है ।
जिसका अन्तर्मानस अन्तरिक्ष की तरह विराट है। जिसका हृदय सागर की तरह गम्भीर है । जिसके विचार हिमालय की तरह उन्नत हैं।
जो जन-जीवन में अनैतिकता के कूड़े-कर्कट को हटाकर उसके स्थान पर नैतिक मूल्यों की संस्थापना करना चाहती हैं।
जो भोग-विलास के चाक्-चिक्य में उलझी और अपने आत्म-गौरव को भूली-बिसरी महिलाओं को आध्यात्मिक जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करती हैं। समाज में फैली कुरीतियाँ, अर्थहीन परम्पराएँ जिससे समाज पिसा जा रहा है, उसे तोड़ने के लिए जो कटिबद्ध हैं।
__ जो सत्कार के सरस-सुमनों को पाकर आह्लादित नहीं होती और अपमान के विष को पाकर मुझाती नहीं । किन्तु सदा समता के सरोवर पर राजहंसिनी की भाँति तैरती हैं।
जो इस वैज्ञानिक युग में प्रचुर साधन-सुविधाएँ उपलब्ध होने पर भी सतत पैदल परिभ्रमण कर जन-जन के मन में अध्यात्म और धर्म की ज्योति प्रज्वलित करती हैं।
जो इस धरती पर स्वर्ग को उतारने में जी-जान से लगी हैं।
जो हिंसा, अनैतिकता, भ्रष्टाचार और दुराचार की कस-मसाती बेला में अहिंसा, सदाचार और नैतिकता का पाठ पढ़ाने में तल्लीन हैं। उस विराट् व्यक्तित्व की धनी विदुषी श्रमणी का नाम हैमहासती पुष्पवतीजी!
महासती पुष्पवतीजी स्थानकवासी जैन समाज की एक लब्ध प्रतिष्ठित साध्वी हैं । उनका बाह्य व्यक्तित्व चित्ताकर्षक है और आन्तरिक व्यक्तित्व मनमोहक है।
सुदर्शन बाह्य व्यक्तित्व लम्बा कद, गौरवर्ण, प्रशस्त ललाट, तीखी और उठी हुई नाक, गहराई तक झाँकती हुईं सतेज आँखें, मुस्कराता हुआ मुख-मण्डल । यह है उनका बाह्य व्यक्तित्व । जिन्हें लोग महासती पुष्पवतीजी के नाम से जानते हैं, पहिचानते हैं। प्रथम दर्शन में ही दर्शक को यह अनुभूति होती है कि यह एक आर्ष साध्वी है । यह एक ऐसी जीवन्त प्रतिमा है जो उसके मानस में उतरकर श्रद्धा के सिंहासन पर विराजमान हो सकती है।
१६४ | द्वितीय खण्ड : व्यक्तित्व दर्शन
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