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म साध्वारत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
selesestasedeoastasbodhslesh resesesaslesedesholestestdessestereotasfasfastesteshdodesksesesa stofastadesh desesesedesesbdesesedesespondesesesesbhsbsesfesbshsed:
एक बूंद; जो गंगा बन गई
-सावी प्रियदर्शना एम. ए.
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जन्म, जीवन और मृत्यु-जिन्दगी के तीन चरण हैं। जन्म सभी का प्रायः समान होता है। मृत्यु सभी की अवश्यम्भावी है। किन्तु जीवन शैली सभी की भिन्न होती है।
जीवन शैली के कारण ही जन्म एवं मृत्यु का अलग-अलग महत्त्व है, मापदण्ड है।
जिनका जीवन विशिष्ट कर्तृत्वसंपन्न होता है, संयम-त्याग-सेवापरोपकार विशिष्ट सृजनधर्मी प्रतिभा से मंडित होता है, उनका जन्म भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है और मरण भी अमरता का चरणन्यास बन जाता है।
जैनश्रमणी श्री पुष्पवतीजी का जीवन और जन्म इसीलिए महत्वपूर्ण है, चूंकि उन्होंने जीवन को कुछ विशिष्ट शैली में जीया है। एक सुरभित कमल की तरह उनका जीवन अपने परिपार्श्व से निर्लेप तो है ही, किन्तु अपने अनेक सहज गुणों की परिमल से समूचे वातावरण को प्रभावित/सुवासित किया है। उनके जीवन का एक ऐसा अन्दाज हैजिसमें सहजता के साथ मधुरता, निर्मलता, निर्लेपता, किन्तु समस्त के कल्याण हेतु विसर्जित हो जाने की अदम्य तरंग है। महासतीजी का संपूर्ण जीवन उस दीपक की भाँति है, जो अपना
श करता है। उस पुष्प की तरह है, जो अपनी एक-एक कली को सौरभ और सौन्दर्य का दूत बनाकर समर्पित कर देता है।
आइये, ऐसी दिव्य महामनस्वी श्रमणी के जीवन की गौरव गाथा पढ़ें।
-सम्पादक
एक बूद, जो गंगा बन गई :माध्वी प्रियदर्शना | १६३.
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