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साध्वारत्न पुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ
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जैन शासन - प्रभाविका अमर साधिकाएं एवं सद्गुरुणी परम्परा
- उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि
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[ साध्वी रत्न पुष्पवतीजी म. के जिस सद्गुण सुवास स्निग्ध सर्वतोभद्र व्यक्तित्व के प्रति जन-जन का मन भाव विभोर है, जिसके प्रति गुरुजन आशीर्वचन एवं मंगल कामना के पुष्प वर्षा रहे हैं, विद्वद् मनीषी जिनकी सद्गुण ललित कलित कलाओं का अभिनन्दन कर रहे हैं और श्रद्धा-भक्ति संभृत भक्त हृदय जिनकी वन्दना व श्रद्धाना में भावनाओं की मूल्यवान मणियां प्रस्तुत कर रहे हैं, उनका जीवन परिचय जानने की उत्सुकता भी ललक रही है और उनकी परम्परा का इतिहास जानने की जिज्ञासा भी प्रबल हो रही है - यह स्वाभाविक है । प्रस्तुत में हम सर्वप्रथम भगवान महावीर की पावन परम्परा की प्रतिनिधि महाभागा श्रमणियों का एक संक्षिप्त इतिवृत्त प्रस्तुत करना चाहते हैं, और पश्चात् इसी परम्परा का प्रतिनिधित्व करने वाली महारुती पुष्पवतीजी का संक्षिप्त जीवन वृत्त : - संपादक ]
मूल से फूल तक
प्रथम शताब्दी
भगवान महावीर ने केवलज्ञान होने के पश्चात् चतुविध तीर्थ की स्थापना की । साधुओं में गणधर गौतम प्रमुख थे तो साध्वियों में चन्दनबाला मुख्य थीं । किन्तु उनके पश्चात् कौन प्रमुख साध्विय हुई, इस सम्बन्ध में इतिहास मौन है । यों आर्या चन्दनबाला के पश्चात् आर्या सुव्रता, आर्या धर्मी, आर्य जम्बू की पद्मावती, कमलमाला, विजयश्री, जयश्री, कमलावती, सुसेणा, वीरमती, अजयसेना इन आठ सासुओं के प्रव्रज्या ग्रहण करने का उल्लेख है और जम्बू की आठ पत्नियाँ समुद्रश्री, पद्मश्री, पद्मसेना, कनकसेना, नभसेना, कनकश्री, रूपश्री, जयश्री, इनके भी आहती दीक्षा लेने का वर्णन है ।
वीर निर्वाण सं० २० में अवन्ती के राजा पालक ने अपने ज्येष्ठ पुत्र अवन्तीवर्धन को राज्य तथा लघुपुत्र राष्ट्रवर्धन को युवराज पद पर आसीन कर स्वयं ने आर्य सुधर्मा के पास प्रव्रज्या ग्रहण की थी । राष्ट्रवर्धन की पत्नी का नाम धारिणी था । धारिणी के दिव्य रूप पर अवन्तीवर्धन मुग्ध हो
जैन शासन प्रभाविका अमर साधिकाएं एवं सद्गुरुणीं परम्परा : उपाचार्य श्री देवेन्द्रमुनि | १३७
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