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________________ + + + ++ + ++ + +++++ + +++ ++++ ++ .. . .................. ... ... ...... . साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ •• •••••••••••••• । देवेन्द्र मुनिजी को 'उपाचार्य' पद प्रदान किया 1 गया। बहिन पुष्पवती जी म० से भी मेरा परिचय मेरी सदगुरुणी । अच्छी तरह से रहा। और मुझे ज्ञात हुआ कि -अशोक जैन, बी० काम० उदयपुर दीक्षा स्वर्ण जयन्ती पर अभिनन्दन ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है। मैं अपनी ओर से और परिवार की Licatalosbeeshabsbesidesbeled eled Let.iade badededosdede kakaskedesideshabdesh, ओर से श्रद्धा सुमन समर्पित कर रहा हूँ। जैन श्रमणी परम्परा बहुत ही प्राचीन परम्परा रही है, जहाँ पर इतिहास की पहुंच नहीं है। भगवान ऋषभदेव प्रागैतिहासिक काल में हुए हैं जो पहले प्रथम तीर्थंकर हैं उन्होंने चतुर्विध तीर्थ की स्थापना की थी, उसमें एक तीर्थ श्रमणी का भी योग्यता का अभिनन्दन था। और उसके पश्चात् जितने भी तीर्थकर हुए उन सभी ने भी श्रमणी तीर्थ की स्थापना की। --अम्बालाल सिंघवी हजारों-लाखों महिलाओं ने श्रमणी धर्म स्वीकार (यशवन्तगढ़) कर जन-जन के सामने एक आदर्श उपस्थित किया। जब हम श्रमणियों के इतिहास को पढ़ते हैं सद्गुरुणी श्री पुष्पवतीजी, प्रसन्नता स्नेह और तब हमें सहज ही परिज्ञात होता है कि श्रमणी धर्म सद्भावना की अभिव्यक्ति की एक सजीव मूर्ति हैं। जब भी मैंने उनके दर्शन किये उन्हें प्रसन्नमुद्रा में को ग्रहण करने वाली सामान्य महिलाएँ ही नहीं, पाया । उनका हृदय सरल, मुखाकृति सौम्य और विशिष्ट महिलाएँ भी श्रमण धर्म को स्वीकार कर जैन धर्म की प्रबल प्रभावना करने वाली थी। यह एक कार्य प्रणाली रसमयी है, ये वे गुण हैं जिसके कारण वे समाज में, संघ में समादृत हुईं। मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि पुरुष में मस्तिष्क प्रधान सद्गुरुणी श्री सोहनकुंवरजी म० वृद्ध सतियों की _ है तो नारी में हृदय प्रधान है। पुरुष में पौरूष सेवा के कारण उदयपुर लम्बे समय तक स्थिरवास होता है तो नारी में सहज भावनाएँ होती हैं । वे विराजी थी और मेरा उदयपर पारिवारिक संबंध भावना के प्रवाह में बहती हैं यही कारण है कि होने के नाते से यशवन्तगढ़ से उदयपुर आना श्रमणों की अपेक्षा श्रमणियों की संख्या सदा जाना रहा और उदयपुर में अनेकों बार आप श्री अधिक रही है। तप आदि के क्षेत्र में भी श्रमणियाँ के दर्शन किये। और आपश्री भी अनेकों बार सन्तों से भी आगे रही हैं। आगम साहित्य के यशवन्तगढ़ पधारी और मेरे ही मकान में विराजी पृष्ठ इस बात के साक्षी हैं। जिससे मुझे बहुत ही निकट से सेवा का अवसर परमविदुषी साध्वीरत्न इस युग की एक सर्व श्रेष्ठ साध्वी हैं जिनका जन्म राजस्थान की मिला। आपश्री के गुणों से मैं बहुत ही प्रभावित पावन भूमि उदयपुर में हुआ। आपने तेरह वर्ष की लघुवय में दीक्षा ग्रहण की और निरन्तर साधना हुआ। हम सभी की सही भावना है कि आपकी # कृपा दृष्टि सदा हमारे पर और हमारे संघ पर। के क्षेत्र में आगे बढ़ती रही और अपने सद्गुणों बनी रहे जिससे हम धर्म के क्षेत्र में खूब प्रगति ___ के कारण आज वे विश्ववंद्य बन गई हैं। मैंने बहुत ही छोटी उम्र में आपके दर्शन किये कर सकें। मेरे ज्येष्ठ बंधु उपाध्याय पूज्य गुरुदेव श्री पुष्कर HHHHHHHHHHHHHHHH Hii १०८ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन www.jaine
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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