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प्रत्येक युग में उन्मुक्त भाव से वह संसार को प्रमामृत प्रदान करती रही है । माया की छाया में रहकर भी वह उसे त्यागने में गौरव का अनुभव करती रही है। उसमें अधिकार लिप्सा नहीं पर समर्पण की भावना प्रमुख रही । वह अपनी उदारता, उदात्तता और मधुरता से मानव मन में दिव्य तेज और ओज का संचार करती रही है । चाहे क्रान्ति हो, चाहे शान्ति हो, वह भ्रान्ति के चक्कर में न उलझकर दोनों ही क्षणों में शानदार दायित्व निबाहती रही है । जब हम अतीत के इतिहास को उठाकर देखते हैं तो प्रत्येक युग में कुछ ऐसा विशिष्ट नारियाँ हुई हैं जिन्होंने अपने ओजस्वी-तेजस्वी और वर्चस्वी व्यक्तित्व से युग को नया मोड़ दिया, नई दिशा दी। नया चिन्तन दिया, नया दर्शन दिया। वैदिक युग में अदिति, भारती, रम्भा और श्रद्धा का नाम गौरव के साथ ले सकते हैं। उपनिषद काल में मैत्रयी और गार्गी के नाम उल्लेखनीय हैं । रामायण युग की सीता, महाभारत युग की द्रौपदी, पूराण युग की सावित्री ने भारतीय संस्कृति की गरिमा में अभिवृद्धि की है । बौद्ध साहित्य में सुजाता, सुभा, यशोधरा, गौतमी आदि के नाम गौरव के साथ अंकित हैं । जैन साहित्य में मां मरूदेवी, ब्राह्मी, सुन्दरी, भगवती मल्ली, शिवा, सीता, अन्जना, चन्दनवाला, जयन्ती, रेवती आदि हजारों नाम मानव जाति के मुकुट में मणि की तरह चमक रहे हैं। राजपूत युग में राजस्थान को वीर नारियों की वीर गाथाओं की स्याही अभी तक सूखी नहीं है। आधुनिक युग में कस्तरबा, सरोजिनी नायड, कमला नेहरू, विजया लक्ष्मी और इन्दिरा गाँधी ने भारतीय नारी की अजेय शक्ति का परिचय प्रदान किया। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने नारी को सभी क्षेत्रों में पूर्ण विकास करने की प्रबल प्रेरणा प्रदान की । उनकी प्रेरणा से उत्प्रेरित होकर नारी ने पुरुषों की तरह ही सत्याग्रह और असहकारिता आन्दोलन में भाग लिया। एतदर्थ ही एक पाश्चात्य चिन्तक ने भारतीय नारो के सम्बन्ध में चिन्तन करते हुए बहुत ही सुन्दर लिखा है-नारी का इतिहास आँसू का भी है और फूलों का भी है । उसका अतीत चाहे कैसा भी रहा हो, परन्तु उसका वर्तमान सुन्दर है । तो भविष्य बहुत ही मधुर ओर आशावादी है ।
भारतीय नारी का समूचा इतिहास नारी के ज्वलंत त्याग-प्रेम-निष्ठा-सेवा तप और आत्मविश्वास के दिव्य आलोक से जगमगा रहा है । यह परखा हुआ सत्य है कि भारतीय नारी में जब तक शील, सदाचार, लज्जा, दया, सेवा आदि सद्गुण चमकते रहेंगे तब तक उसकी महिमा बढ़ेगी। उसकी आँखें जमीन पर और उसका मन परमात्म भाव में लीन रहेगा तब तक उसकी गरिमा को कोई चैलेन्ज नहीं दे सकता । पर खेद है कि भौतिकवाद की आँधी ने भारतीय नारी को विलासिता के चंगुल में फँसा दिया है जिससे वह मर्यादा को विस्मृत कर चन्द चाँदी के टुकड़ों के पीछे दीवानी बन रही है । एक दार्शनिक ने सत्य ही लिखा है-पुरुष नारीत्व को जब प्राप्त करता है तो भगवान बन जाता है और जब नारी पुरुषत्व को प्राप्त करती है तो पिशाचिनी बन जाती है । उस दार्शनिक ने नारी में रहे हुए सद्गुणों को प्रगट करने की प्रेरणा दी है । क्योंकि नारी का हृदय कोमल होता है । वह पर दुःख-कातर होती है । किन्तु पुरुष का हृदय कठोर/परुष होता है । जब कठोरता का विकास होगा तो नारी, नारी नहीं रहेगी, वह चण्डी के रूप में उग्र बन जायेगी।
जब हम भारतीय इतिहास को गहराई से निहारते हैं तो हमें यह सहज ही अनुभूति होती है कि वैदिक परम्परा में कुछ तेजस्वी नारियाँ अवश्य हुई हैं किन्तु वैदिक महर्षि नारी के प्रति उपेक्षित रहे । उन्होंने नारी को न वेदों के अध्ययन के लिए छूट दी और न स्वतन्त्र रूप से अध्यात्मिक समुत्कर्ष करने और न पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करती हुई योग साधना करने का ही विधान किया। तथागत बुद्ध भी अपने संघ में नारी को स्थान देने के लिए कतराते रहे । जब आनन्द ने अत्याग्रह किया तो नारी को बुद्ध
आदिवचन
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