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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
निहारकर हमारा हृदय प्रमुदित हो उठा । “यत्रा किसी भी विषय को जब समझाती हैं तो वह विषय कृति तस्र गुणा वसन्ति' वह युक्ति सहज स्मरण हो सहज ही हृदयंगम हो जाता है। वे केवल विदुषी आई । वार्तालाप करने पर ऐसा परिज्ञात हुआ कि ही नहीं साथ ही सफल साधिका भी हैं। नियमित उनकी वाणी अमृत से भी अधिक मधुर है। उनका समय पर वे जप करती हैं, ध्यान करती हैं, शास्त्रीय ज्ञान बहुत ही गम्भीर है। उन्होंने जो ज्ञान स्वाध्याय और चिन्तन करती हैं। उनका चिन्तन की बातें बताई-वे आज भी स्मृति पटल पर चमक बहुत ही स्पष्ट है। रही हैं । किन्तु दूसरे वर्ष ही उनका संथारे के साथ मैंने उनके प्रवचन को भी सुना है। उनका उदयपुर के सन्निकट खैरोदा गाँव में स्वर्गवास हो प्रवचन राजनेताओं की तरह नहीं होता। अपितु गया । वह विरल विभूति आज हमारे सामने नहीं वे शास्त्रीय रहस्यों का इस प्रकार विश्लेषण है किन्तु उनकी गौरव-गाथा आज भी दिग्-दिगन्त करती हैं कि श्रोताओं के अन्तर्मानस में वीतराग में गूंज रही है । वे जन-मानस के स्मृति पटल पर वाणी के प्रति सहज निष्ठा पैदा होती है उनके सदा जीवित रहेंगी।
द्वारा सम्पादित दशवैकालिक सूत्र मैंने पढ़ा है। __माताजी महाराज के दर्शन के पश्चात् मैंने उन्होंने जो गाथाओं का विवेचन किया है, वह बहिन महाराज के दर्शन किए । बहिनजी महाराज बहुत ही शानदार है । आगम के रहस्य को जानने ने बहुत ही मधुर शब्दों में ज्ञानामृत पिलाते हुए के लिए सर्चलाइट की तरह उपयोगी है। महामहिम हमें बताया कि सद्गुरु जीवन नैया के खवैया होते आचार्य सम्राट आनन्द ऋषिजी म. के आह्वान पर हैं। देव, गुरु और धर्म ये तीन तत्त्व हैं। इनमें गुरु पूना में सन्त सम्मेलन का भव्य नव्य आयोजन बीच में हैं जो हमें वीतराग देव की पहिचान कराता हुआ । इस आयोजन में भारत के सुदूर अंचलों से है, और साथ ही धर्म के रहस्य को भी समझाता विहार कर सन्त व सतीवृन्द का आगमन हुआ। है। जो ज्ञान, दर्शन और चारित्र में भारी होता है, महासतीजी पुष्पवती जी भी राजस्थान से पधारी। वह गुरु है । इसीलिए भारत के प्राचीन मनीषियों महासती पृष्पवतीजी के लघुभ्राता देवेन्द्रमुनिजी को ने कहा है-गुरु ही ब्रह्मा है, विष्णु है, महेश है। उपाचार्य पद प्रदान किया। सम्मेलन के पश्चात् गुरु साक्षात् परमेश्वर है । गुरु से बढ़कर अन्य कोई हमारी प्रार्थना को सम्मान देकर हमारे निवासस्थान नहीं है । गुर हमें जीवन निर्माण का गुरु (रहस्य) पुष्कर धन भी पधारीं । इस प्रकार उनकी अपार बताता है। ज्योतिषशास्त्र का भी मन्तव्य है कि कृपा मेरे पर और हमारे परिवार पर रही है। जिसके जन्म कुण्डली में गुरु उच्च स्थानीय है तो दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के सुनहरे अवसर पर हम अन्य ग्रहों का जोर नहीं चलता। आप कितने उन्हें अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित करने जा रहे हैं । भाग्यशाली हैं कि आप पर गुरुदेव की अपार कृपा यह उनका अभिनन्दन नहीं, अपि
,अपितु हमारा ही गौरव है और आपकी भी गुरुदेव पर अपार निष्ठा है। है। गणियों के गणानुवाद करने से हमारे कर्मों की
सन् १९८२ और सन् १९८३ में क्रमशः जोधपुर निर्जरा होती है । इसलिए इस उपक्रम के द्वारा हम और मदनगंज-किशनगढ़ में महासतीजी के वर्षावास अपना ही हित साधते हैं। मैं अपनी अनन्त श्रद्धा में दर्शनों का सौभाग्य मिला। और अनेक बार महासतीजी के चरणों में समर्पित करता हूँ, कि वे सेवा में बैठ कर उनसे वार्तालाप करने का भी युग-युग तक धर्म की प्रबल प्रभावना करती रहें । अवसर प्राप्त हुआ। मैंने यह अनुभव किया कि उनका यशस्वी जीवन सभी के लिए प्रेरणामहासती पुष्पवतीजी सरस्वती की पुत्री हैं । वे जिस प्रदाता बनें।
थम खण्ड, शुभकामना : अभिनन्दन
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