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________________ साध्वारत्न पुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ शो भा --श्री शोभाचन्द्रजी भारिल्ल साध्वी संघ की केवल मानवजाति में ही नहीं; मानवेतर प्राणियों की भी जीवन शैली में विभिन्नता दृष्टिगोचर होती है । इस विभिन्नता का कारण उनकी सहज प्रवृत्ति की विचित्रता है । किन्तु प्रकृति में वैचित्र्य का हेतु क्या है ? इसके अनेकानेक कारणों में प्रधान कारण अदृष्ट की भिन्नता को ही माना जा सकता हैं । एक व्यक्ति साधारण कोटि का होने पर भी अपने आपको असाधारण प्रकट करने के प्रयास करता रहता है, संकीर्ण होते हुए भी विराट् रूप में प्रदर्शित करने की चेष्टा में संलग्न है, अज्ञ होने पर भी विज्ञ के रूप में विश्रुत करता है, हीनाचारी होकर भी उच्चाचारी प्रदर्शित करने का प्रयास करता रहता है और यह सब करने के लिए दूसरों को अपने से हीन, नगण्य और निम्नकोटि का सिद्ध करने में कोई कसर नहीं रखता । वह दम्भ और असत्य का आचरण करते नहीं हिचकता ऐसा करके भी वह विवेकशील जनों की दृष्टि से छिपा नहीं रह सकता । इसके विपरीत कतिपय व्यक्ति ऐसे होते हैं जो किसी क्षेत्र में असाधारण होते हुए भी अपनी नम्रवृत्ति एवं अहंकारहीनता के कारण अपने आपको साधारण ही अनुभव करते हैं । अपनी प्रशस्ति सुनकर संकोच अनुभव करते है । अपनी असलियत में ही मस्त रहते हैं । अपने पद के अनुरूप कर्त्तव्यनिष्ठा ही उनका ध्येय होता है । महासती श्री पुष्पवतीजी दूसरी श्रेणी के व्यक्तित्व का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं । उन्हें कीर्ति की कामना नहीं है । ख्याति का लोभ छू भी नहीं सका है । सत्कार सम्मान की चाह नहीं है । अपनी विद्वत्ता को विश्रुत करने का विचार भी उनके हृदय में उद्भुत नहीं होता । असाधारण होने पर भी साधारण के रूप में अनुभव करना प्रकट करना, और व्यवहार करना उनकी विशेषता है । लगभग आधी शताब्दी होने आई, तब से मैं उनके निकट परिचय में हूँ | लम्बे समय तक उन्होंने मुझे निमित्त बनाकर जैन आगमों और दर्शनशास्त्र का अध्ययन किया है । उस समय में उनके व्यक्तित्व को पूरी तरह समझने का मुझे अवसर मिला है । इसके आधार पर निस्सन्देह कहा जा सकता है कि महासती पुष्पवतीजी अत्यन्त शान्त, दान्त, विनम्र एवं आचारनिष्ठ साध्वी हैं । वे साध्वीसंघ की शोभा हैं । उन्होंने अपने आदर्श जीवन व्यवहार और धर्मदेशना के माध्यम से समाज को बहुत कुछ दिया है, दे रही हैं और साथ ही आत्मोत्थान की साधना में सदा सजग रहकर निरत रहती हैं । महासतीजी का अभिनन्दन प्रमोद भावना का अभिव्यक्तिकरण है और साथ ही दूसरों को प्रेरणाप्रदायक भी है । हार्दिक कामना है कि महासतीजी चिरायु हों, उनकी साधना निरन्तर उग्रतर होती रहें । संघ को उनसे जो बहुमूल्य अवदान प्राप्त हो रहा है वह चिरकाल तक प्राप्त होता रहे । साध्वी संघ की शोभा ! ७६ www.jain
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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