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साध्वारत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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सेवा का प्रेरक
प्रतिबिम्ब
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जैन श्रमण श्रमणियों का समस्त जीवन इतिवृत्त, सम्यक् - त्रयीका मूर्तिमन्त प्रकाशित प्रतीक होता है, दीक्षा ग्रहण के उत्तर काल के पाँच दशक तो चिन्तन, उद्बोधन, आध्यात्मिक जागृति- प्रखरता और चतुविध संघ की सम्माननीय सेवा का प्रेरक प्रतिविम्ब होता है ।
परम पूज्यनीय स्वनाम धन्य प्रातः स्मरणीय साध्वी शिरोमणि पु० पुष्पवतीजी म० सा० के इसी उन्नायक काल में स्वर्ण जयन्ती मनाने का निश्चय जितना उल्लासदायक है उतना ही समाज के लिए प्रेरक और स्पृहणीय है । कृपया मेरी ओर से विनम्र अभिवादन, अभिनन्दन और साधुवाद स्वीकार करें ।
- श्री जवाहरलाल मुनोत; बम्बई
वन्दनीया महासती जी
हमारी यह पावन पुण्य भूमि सन्त और सतियों की तपोभूमि रही है । यहाँ पर हजारों-लाखों नर रत्न हुए हैं । जिन्होंने अध्यात्म साधना कर अपने जीवन को धन्य बनाया । और दूसरों के लिए प्रकाश स्तम्भ की तरह पथ प्रदर्शक बने । साध्वी रत्न श्री पुष्पवतीजी एक प्रतिभा सम्पन्न साध्वी हैं । जिन्होंने लघुवय में सद्गुरुणीजी श्री सोहन कुंवरजी महाराज के पास आर्हती दीक्षा ग्रहण की । तपः साधना और संयम आराधना कर
अभिनन्दन ग्रन्थ की रूप रेखा को निहारकर यह स्पष्ट हो जाता है कि यह ग्रन्थ जैन धर्म, दर्शन इतिहास, साहित्य, संस्कृति ध्यान और योग जैसे गम्भीर विषयों का एक अनुपम खजाना होगा जिसमें अधिकारी मुर्धन्य मनीषियों के लेख होंगे । यह उपक्रम गागर में सागर भरने के सदृश है । इस अभिनव - अनुपम और अद्भुत अनुष्ठान की सफलता असंदिग्ध है। मैं प्रबुद्ध पाठकों से यह विनम्र निवेदन करूँगा कि ऐसे अद्भुत ग्रन्थ केवल पुस्तकालय व ड्राइंग रूमों की शोभा श्री में ही अभिवृद्धि न करें अपितु इस ग्रन्थ का पठन-पाठन कर अपने जीवन में ज्ञान-विज्ञान की अभिवृद्धि करें ।
- चाँदमल मेहता ( मदनगंज )
अपने जीवन को ज्योतिर्मय बनाया । सन् १६५५ में मैं महासतीजी के सम्पर्क में आया । उस समय उनका वर्षावास मेरी जन्म स्थली मदनगंजकिशनगढ़ में ही था । यों मेरी प्रारम्भ से ही रुचि राजनीति में रही । गाँधी की आँधी ने मेरे को प्रभावित किया और आजादी का दीवाना बनकर स्वतन्त्रता संग्राम में जुटा रहा। जीवन के उषाकाल में धर्म के प्रति सहज लगाव नहीं था । यों परम्परा से हम स्थानकवासी थे । जब महासतीजी का वहाँ
वन्दनीय महासतीजी | ७१
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