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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
उनका जीवन परोपकारी जीवन हैं। उनके जीवन महासतीजो अपने नाम के अनुरूप सद्गुणों की का तिल-तिल आत्मोत्थान व समाजोत्थान में सौरभ फैलाती है। वे जहाँ भी गई हैं, वहां अपने लगा हुआ है। यही कारण हैं कि उन्होंने अनेक पवित्र चरित्र की सौरभ फैलाई है। यही कारण है बालिकाओं को धार्मिक संस्कार प्रदान किए हैं। कि श्रद्धालुओं के सिर आपके गुणों के प्रति नत हैं । अनेक भूले-भटके युवकों को व्यसनों से मुक्त किये सभी के अन्तर्हदय की यह मंगल कामना है कि आप
पूर्ण स्वस्थ रहकर समाज को सही मार्ग-दर्शन प्रदान पष्प की सबसे बड़ी विशेषता है कि वह सदा- करती रहें। आपकी स्वस्थता समाज के लिए सर्वदा अपनी मधुर सौरभ से जन-मन को आह्ला- वरदान रूप रहेगी । अभिनन्दन की इस बेला में दित करता है, ताजगी प्रदान करता है। वैसे ही हमारे अभिनन्दन को ग्रहणकर हमें कृतार्थ करें।
दो कदम आगे
-श्री चम्पालाल कोठारी बम्बई
परम विदुषी महासती श्री पुष्पवतीजी का प्रश्न को बहुत ही ध्यान से सुनती हैं और फिर स्मरण आते ही मानस पटल पर एक ऐसे दिव्य, ऐसा सटीक उत्तर देती है कि प्रश्नकर्ता को शंकाएँ
भव्य, व्यक्तित्व का चित्र अंकित हो जाता है। उसी तरह नष्ट हो जाती है । जैसे-इलेक्ट्रोक स्त्री च '-जिनके मस्तिष्क में ज्ञान का अपार सागर हिलोरे को ओन करते ही अन्धकार स्वतः ही नौ दो ग्यारह
ले रहा है। जिनके हृदय से अनुभव की रश्मियाँ हो जाता है। विकीर्ण हो रही हैं। जिनका पावन दर्शन प्रेरणा आज का युग नारी जागरण का युग है। का अक्षय स्रोत है।
सर्वत्र नारियों ने अपना बुद्धि-कौशल प्रदर्शित किया मैंने महासती पूष्पवतीजी के अनेकों बार है। हमारे स्वर्गीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी ने दर्शन किए हैं । उनके पावन प्रवचन सुने हैं । उनसे तो यह सिद्ध कर दिया कि नारी पुरुष से पीछे विचार-चर्चाएँ भी की है। उन सभी में मुझे उनके नहीं। किन्तु दो कदम आगे ही है। वह यदि लुभावने व्यक्तित्व के दर्शन हुए । उनके प्रवचनों में अपनी शक्ति का विकास करे तो पुरुष का पौरुष सबसे बड़ो विशेषता है कि वे आगम के गुरु गम्भोर भी फिका पड़ जाता है। महासती पुष्पवतीजी रहस्यों को सरल और सुगम रीति में प्रस्तुत करतो ऐसी ही प्रतिभासम्पन्न साध्वी हैं । जो कई सन्तों हैं। जिससे श्रोता ऊबते नहीं। उन्हें ऐसा अनुभव से ज्ञान, दर्शन और चारित्र में आगे है । उनके होता है कि प्रवचन गंगा में अवगाहन करने से सद्गणों पर मुग्ध होकर के ही दीक्षा स्वर्ण जयन्ती उनकी चिन्ताएँ मिट रही हैं और चिन्तन उबुद्ध के अवसर पर उन्हें अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित किया हो रहा है। चाहे बालक हों, चाहे वृद्ध हों । चाहे जा रहा है। जिससे उनकी महिमा और गरिमा युवक हों, चाहे युवतियाँ हों। सभी के लिए वह स्वतः सिद्ध है। मैं अपनी ओर से श्रद्धा-सुमन प्रेरणाप्रद है।
समर्पित कर रहा हूँ। विचार चर्चा में तो जो आनन्द आता है, वह शब्दों के द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता । वे
७० | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन
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