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विजयानंद सूरीश्वरजी महाराज, प्रसिद्ध नाम आत्मारामजी महाराज, जिनकी पावन स्वर्गारोहण शताब्दी का पुण्य अवसर प्राप्त हुआ है।
श्रमण भगवान महावीर स्वामी की सुदीर्घ अविछिन्न श्रमण परम्परा के वे कीर्तिकार थे। इस परम्परा को एक शिखर तक ले जाने का और विश्व से परिचित कराने का सम्पूर्ण श्रेय उन्हीं को जाता है।
इस श्रमण परंपरा को उनकी समस्त प्राचीन विभूति के साथ उसे पुनर्जीवित कर उन्होंने केवल जैन धर्म और समाज पर ही नहीं, अपितु समस्त संसार पर अचिंत्य उपकार किया है।
जिन शासन प्रभावना के अनगिनत कार्यों से अपने आदर्श एवं दिव्य जीवन से अपने अतुलनीय व्यक्तित्व एवं चमत्कृत ज्ञान गरिमा से और अपने साहित्य के कालजयी सृजन एवं शाश्वत सिद्धान्तों की प्रतिष्ठा के लिए वे जैन इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों पर सदा अमर रहेंगे।
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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