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संग्रह कर लेना या अपने प्रकांड पांडित्य के बल पर जन मानस को मंत्र-मुग्ध करके उनसे आदर, सम्मान और यश की प्राप्ति कर लेना ही इस जीवन का लक्ष्य नहीं है ।
जीवन का लक्ष्य तो और है उसे समझें, पहचानें । धन, जन अधिकार और प्रतिष्ठा से प्राप्त होने वाला आनंद वास्तविक नहीं है । ये सभी सुख केवल सुखाभास है और अनित्य है । सच्चा सुख तो इन सभी से मुक्त हो जाने में है । और वह तभी सम्भव होगा जब वह बाह्य जगत से विमुख होकर अपनी आत्मा में प्रवेश करेगा। हमारी श्रमण संस्कृति इसी मार्ग का निदर्शन करती है
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आत्मा के शाश्वत सुख का पथ प्रदर्शन करने वाली श्रमण संस्कृति मानव को आध्यात्मिक विकास एवं उच्चता का महत्त्व बताती है । वह अनादिकाल से आत्मा की अनंत शक्तियों को जगाने में मनुष्य की सहायक बनती आई है तथा धीरे-धीरे उसे कल्याण मार्ग पर अग्रसर करती है । श्रमण संस्कृति के सच्चे रूप में अपनाने वाले अनेक संत एवं साधक आत्म गुणों का विकास करते हुए स्व कल्याण के साथ-साथ पर कल्याम भी करते आए हैं ।
भारतीय संस्कृति की सच्चे अर्थों में रक्षा करने वाले दूसरे शब्दों में कहें तो उसे निरंतर विशुद्ध एवं ज्योतिर्मय बनाए रखने वाले केवल संत ही होते हैं। वर्तमान चौबीसी के अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने इस सन्त संस्कृति को, जिसे हम श्रमण संस्कृति कहते हैं उत्कर्ष की चरम सीमा तक पहुंचाया था । उन्होंने चिंतन, दर्शन और साधना के क्षेत्र को विराट रूप देकर जन-समाज में क्रांति की एक अजस्र धारा प्रवाहित की थी।
यद्यपि साधना एवं चेतना की वह वेगवती धारा काल प्रभाव से कुछ क्षीण भी दिखाई दी। मनुष्यों की आत्म चेतना पर प्रमाद, जड़ता, पाखंड एवं धार्मिक अन्ध विश्वासों की परतें छाती रहीं । किन्तु वे परतें भी साधना, भक्ति और उपासना की दिव्य ज्योति को पूर्णतया लुप्त न कर सकी । मन्द होने पर भी वह सतत प्रकाश फैलाती रही। इसका एकमात्र कारण यही है कि इस वसुन्धरा पर कुछ ऐसी ज्योतिर्धर आत्माएं अवतरित होती रहीं, जिन्होंने अपने प्राणों का बलिदान देकर भी प्रभुवीर के शाश्वत एवं उज्ज्वल आदर्शों की रक्षा की और अपने सुख - और यश को तिजांजलि देकर सत्य मार्ग की प्ररूपणा की। अपने तप तेज एवं परिष्कृत साधना के द्वारा समाज का मार्ग दर्शन किया। उन्होंने समय समय पर गुमराह लोगों को सच्चे धर्म का स्वरूप बताया, जीव और जगत के रहस्य को समझाया और आत्मा को सर्वथा निर्बन्ध कर लेने का मार्ग सुझाया। इसी मनस्वी श्रमण परम्परा के उज्ज्वल नक्षत्र थे नवयुग निर्माता, जंगम युग प्रधान, पंजाब देशोद्धारक, विश्व वंद्य विभूति, महान उपकारी न्यायाम्भोनिधि आचार्य श्रीमद्
श्रमण परम्परा के उज्ज्वलतम नक्षत्र थे गुरु विजयानंद
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