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दीप्ते विचरति पुरुष: प्रताप विषमाग्नि दग्ध रिपु वर्ग: । लक्षम्यालिङ्गत देहो गज मद संसिक्त भू पृष्टः ॥
अर्थात्- अपने प्रताप रूपी अग्नि से जातक शत्रु वर्ग को भस्म कर देता है । लक्ष्मी उसका आलिंगन करती है और हाथियों के मद से पृथ्वी का ऊपरी भाग भीग जाता है। वास्तव में आत्मारामजी महाराज के सामने धर्म चर्चा में कोई भी नहीं टिक पाता था।
__महाराज साहिब की कुण्डली में गुरु और मंगल छठे स्थान में हैं। कहा जाता है कि छठे घर में शुभ ग्रह शुभ फल प्रदाता नहीं होते। यहां पर गुरु जो शुभ है, उच्च और प्रदीप्त है, अशुभ फल देना चाहिये था परन्तु ऐसा नहीं हैं । ज्योतिष शास्त्रानुसार शष्ठ स्थान का गुरु शत्रुहंता होता है, अत: शुभ फल ही देता है । इसके अतिरिक्त यह गुरु धन भाव को जो उसका अपना ही घर है, पूर्ण दृष्टि से देखता है और अपने घर को कोई भी ग्रह बिगाड़ता नहीं। और फिर गुरु की दृष्टि में अमृत होता है। इस कारण ऐसा जातक नित्य प्रति यश और कीर्ति का लाभ प्राप्त करने वाला होता है। और फिर सूर्य, बुद्ध और शुक्र, गुरु ग्रह के प्रभाव क्षेत्र में होने के कारण जातक को पंडित, रूपवान, धर्मात्मा, सुशील, बली और यशस्वी बनाते हैं । ऐसा व्यक्ति सत्य भाषी, लोक मान्य, विख्यात, राजा तुल्य और विश्व प्रेमी होता है ।यों इस गुरु पर शनि की दशम दृष्टि भी है, जो पापी होती है और जीवन को आधिव्याधि से ग्रसित रखती है पर शनि पर भी नीचस्थ मंगल की चतुर्थ पूर्ण दृष्टि है, जिससे शनि की धृष्टता का नाश होता है।
महाराज साहिब की कुण्डली में छठे स्थान में नीच मंगल स्थित है परन्तु शुभ ग्रह गुरु के साथ होने से उसका नीचत्व समाप्त हो जाता है। वैसे भी शष्ठ स्थान का मंगल शुभ फलदाता ही माना जाता है। मंगल तृतीय भाव का स्वामी होने के कारण आक्रमेश भी है और तृतीय और छटे भाव में परिवर्तन योग भी है । अर्थात् तृतीयेश छठे भाव में और छठे भाव का स्वामी चंद्र तृतीय भाव में है । दशम भाव का स्वामी भी मंगल है जो कर्माधिपति कहलाता है । कर्म स्थान पर शुभ ग्रह गुरु की पंचम पूर्ण दृष्टि है । अत: ऐसा जातक जो भी कार्य करता है वह धर्म प्रवृत्ति से प्रेरित होता है और उस कार्य में भी मान मर्यादा अनुशासन का समावेश रहता है। ऐसा व्यक्ति जो भी कार्य हाथ में लेता है, उसे पूर्ण करके ही छोड़ता है और अंत में विजय श्री प्राप्त करता है । मंगल की पूर्ण दृष्टि तन अर्थात् प्रथम भाव पर भी है जिससे महाराज साहिब का शरीर बलिष्ठ और लालिमा युक्त रहा।
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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