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आदर के साथ याद करते हैं, उसके जीवन एवं कार्यों से कितनी और कैसी प्रेरणा लेते हैं, उसीसे व्यक्ति की वास्तविक पहचान हो सकती है।
इस दृष्टि से न्यायाम्भोनिधि आचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरीश्वरजी (आत्मारामजी) महाराज का यश-शरीर हमारे समक्ष विद्यमान है और हम इसकी कल्पना कर सकते हैं कि वे कितने महान थे।
श्रीमद् विजयानंद सूरि और आत्मारामजी महाराज के नामों का हम चिंतन करें तो प्रतीत होगा कि महापुरुषों के नामों में भी कितना अर्थ गांभीर्य होता है । विजयानंद का अर्थ है जिसने विजय प्राप्त करली है अर्थात् काम, क्रोध, लोभ और मोह आदि आन्तरिक शत्रुओं पर जिसने विजय प्राप्त करली है और उस आत्मिक विजय के आनंद में जो डूब गए हैं, आत्म रमणता में जो निमज्जित हो गए हैं, वे विजयानंद और आत्माराम है।
जन्म कुण्डली पर दृष्टिपात करें तो आत्माराम जी महाराज की मेष राशि तथा कुम्भ लग्न है। ज्योतिष शास्त्रानुसार पुरुष अपने हाथ में दो घट लिये हुए कुम्भ लग्न का प्रतीक माना गया है। दो घटों का अर्थ है धर्म और अधर्म । राम चरित्र मानस में तुलसी दास जी ने लिखा है कि एक बार त्रेता युग में शम्भू कुम्भज ऋषि के समीप गए ।
_ 'रामकथा मुनिवर्यबखानी, सुनि महेश महा सुखमानी।' अत: धर्म और अधर्म के रहस्य से परिपूर्ण कुम्भ राशि सिद्ध होती है। यही कुम्भ राशि आत्माराम जी महाराज का लग्न है । जो शनि की मूल त्रिकोण अर्थात पवित्र राशि है। शनि सुख दुःख और ज्ञान का कारक माना जाता है । अत: देखा गया है कि कुम्भ लग्न वालों का जीवन प्राय: संघर्ष में ही व्यतीत होता है, परन्तु फिर भी आपत्ति सहन करता हुआ जातक कष्ट से विचलित नहीं होता। वह दृढ़ निश्चयी क्रान्तिदूत होता है, और आत्मा को ज्ञान से परिपूर्ण रखता है और अन्त में अपने मत स्थापित कर विश्व को आश्चर्यमुग्ध करता है । आत्माराम जी महाराज के जीवन पर दृष्टिपात करें तो उपरोक्त बातें सही उतरती है।
जन्म कुण्डली में स्त्री, आयु और भाग्य पति क्रमश: सूर्य बुद्ध और शुक्र द्विस्वभाव राशि में हैं । ज्योतिष में चर राशि से स्थिर और स्थिर से द्विस्वभाव राशि को अधिक बलवान माना गया है । उपरोक्त ग्रह गुरु की राशि मीन में अवस्थित है तथा उच्चस्थ गुरु अपने ही घर को नवम पूर्ण दृष्टि से देख रहा है । गुरु दीप्त है और दीप्त ग्रह को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। कहा गया है
श्रीमद् विजयानंद सूरि महाराज की जन्म कुंडली
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