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भावनगर समुद्र के किनारे बसा हुआ है।
भावनगर में आचार्य विजयानंद सूरि विराजमान थे। वे प्रतिदिन शुद्धि के लिए समुद्र के किनारे जाते थे। एक शाम जब वहाँ गए तो समुद्र के कीचड़ में एक गधा फंसा हुआ है और उसके ऊपर भारी वजनदार लकड़ी है। वह गधा निकलने के लिए बहुत प्रयत्न कर रहा था पर भारी लकड़ी को हटा नहीं पा रहा था और बेदम हो रहा था।
आचार्य श्री ने तीरपनी और डंडा साथी मुनि को थमाया और चोल पट्टे का कच्छ कसकर उस भारी लट्ठ को एक ही श्वास से उठाकर किनारे कर दिया। फिर गधे को कीचड़ से निकाल कर जमीन पर लेकर आये । बेदम गधे में चेतना लौट आई। भिक्षा क्यों
एक फारसी के विद्वान मुसलमान ने आचार्य श्री विजयानंद सूरि जी म. का प्रवचन सुना । उनकी अस्खलित वाक्धारा, चमत्कारी शैली और अगाध विद्वत्ता से वे अत्यन्त प्रभावित हुए ।
उस मुसलमान विद्वान ने उनकी बहुत प्रशंसा की और आचार्य श्री से एक प्रश्न पूछने की इजाजत चाही । अनुमति मिलने पर प्रश्न किया :- मेरी समझ में नहीं आता कि आप जैसे सबल विद्वान महापंडित और प्रभावशील पुरुष भिक्षा क्यों मांगते हैं, हाँ जो अपंग है, अज्ञानी हैं जिनके पास भीख के सिवा कोई उपाय नहीं है वे अगर भीख माँगते हों तो कुछ समझ में आता है, पर आप किसी की दया या श्रद्धा के ऊपर जीते हैं यह उचित नहीं लगता। अगर आप चाहें तो आराम से परिश्रम करके आजीविका चला सकते हैं।
आचार्य श्री :- आपकी सूचना ठीक है, पर आप मुझे ऐसा उपाय बताइए कि मैंने जो आत्मकल्याण के लिए व्रत धारण किए हैं वे व्रत कायम रहते हों तो मैं मजदूरी करने के लिए भी तैयार हूँ।
मुसलमान :- पहले मुझे अपने व्रत बताइए।
आचार्य श्री :- आचार्य श्री ने पाँच व्रतों को संक्षेप में समझाया। मुसलमान भाई कुछ देर तक सोचते रहे। अन्त में एक बात सूझी :- आप जंगल में जाकर सूखी लकड़ियाँ इकट्ठी कर बेच सकते हैं।
आचार्य श्री :- परन्तु बिना पूछे हम लकड़ियाँ चुनेंगे तो हमें अदत्त लगेगा। मुसलमान :- आप जंगल के मालिक से अनुमति मांग सकते हैं।
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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