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अजमेर में जहर खिलाने से दयानंद सरस्वती का स्वर्गवास हो गया।
अफसोस ! दो महारथियों का सम्मिलन न हो पाया। न ही शास्त्रार्थ हो पाया। नहीं तो यह चिर स्मरणीय शास्त्रार्थ बन जाता। खुदा की भूल
___ आचार्य विजयानंद सूरि जी. म. मालेरकोटला में विराजमान थे। उनका प्रभाव तेजस्वी सूर्य के समान था। एक मुल्लाजी उनसे चर्चा करने आए। मुल्लाजी अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानते थे और हिन्दुओं को काफिर कहकर घृणा करते थे। अनेक विषयों पर चर्चा चली। मुल्लाजी आचार्य श्री के अगाध ज्ञान के आगे टिक न पाए। निरुत्तर हो गए। पर बराबर यह कहते रहे कि हिन्दू काफिर हैं । वह इस्लाम की बराबरी नहीं कर सकता।
अन्त में आचार्य श्री ने शान्त भाव से पूछा :- मुल्लाजी, उत्तेजित मत होइए । हम काफिर हैं एक क्षण के लिए मान लेते हैं पर एक प्रश्न का उत्तर दो।
मुल्लाजी पहले तो सकुचाए क्योंकि बहुत से ऐसे प्रश्न पूछे गये थे जिसका उत्तर वे दे न पाए थे। फिर भी हिम्मत कर के कहा दूंगा।
आचार्य श्री जी :- आप अपने धर्म के अनुसार बताइए कि जिसे आप काफिर कहते हैं उसे बनाने वाला कौन है ?
__ मुल्लाजी :- इसमें पूछने की क्या बात है। जब सारी कायनात (सृष्टि) को बनाने वाला खुदा है तो हिन्दुओं को भी उसी ने बनाया है।
आचार्य श्री जी :- अच्छा अब बताइए कि इन हिन्दुओं को खुदा ने क्यों बनाया? क्या वे जानते नहीं थे कि ये काफिर मेरे खिलाफ चलेंगे।
इस उत्तर से मुल्लाजी का सारा अभिमान उतर गया। उन्होंने कभी इस दृष्टि से सोचा ही नहीं था। कुछ देर सोचने के बाद मुल्लाजी ने कहा :- आप की बात मुझे ठीक लगती है । आपने मुझे एक नयी जानकारी दी। मेरा सारा गर्व नष्ट हो गया। मैंने बेमतलब आपको तकलीफ दी। मुझे क्षमा करें । मुल्लाजी सलाम कर के चलते बने। करुणा
भावनगर, सौराष्ट्र का प्रमुख नगर है यह जैनधर्म का भी प्रमुख केन्द्र रहा है। आचार्य विजयानंद सूरि जी म. के अनन्य भक्तों का यह नगर है। आचार्य श्री जब गुजरात पधारते थे तो भावनगर अवश्य जाते थे। श्री विजयानंद सूरि: जीवन प्रसंग
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