________________
वक्तृता ही क्या। जिसने हृदय की धुन को और मन के लक्ष्य को ही न बदल दिया। आप विद्वानों के असीम प्रेमी थे। जैन ग्रन्थों का आपके हाथों से बहुत उद्धार हुआ है। आप के मानसिक भाव अनुपम सीमा तक बढ़े हुए थे। आपकी ओजस्विनी और प्रभावशालिनी लेखनी की प्रशंसा के लिये असाधारण शब्दों की आवश्यकता है। आपने अपने प्रशस्त जीवन में बहुत से ग्रन्थ लिखे हैं, जिनमें “जैन तत्वादर्श” “अज्ञान तिमिर भास्कर” “जैन प्रश्नोत्तर” “तत्वनिर्णय प्रासाद” “चिकागो प्रश्नोत्तर” “जैनमत वृक्ष” “सम्यक्त्व शल्योद्धार” “जैनमत स्वरूप” ये ग्रन्थ अवश्य ही दर्शनीय एवं पठनीय है।
आपके जीवन के प्रत्येक भाग में परोपकार कूट कूट कर भरा हुआ था अन्य प्रान्तों की अपेक्षा पंजाब प्रदेश पर आपका उपकार अधिक हुआ है पंजाब प्रान्त के लिए तो जैन धर्म के जन्मदाता ही आपको कहें तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। वर्तमान समय के समस्त साधु मण्डल में से संसार के पदार्थों को तुच्छ समझ कर परोपकार बुद्धि से निरन्तर भ्रमण करके धर्मोपदेश देने वाले थे, तो आप एक थे।
श्री विजयानंद सूरि
२२१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org