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की पुण्य जीवन गाथा का चिंतन और स्वाध्याय भी जीवन शुद्धि अथवा जीवन विकास के विशिष्ट साधनों में से एक है।
परम मनीषी श्री विजयान्द सूरि, श्री आत्मारामजी महाराज अतीत और वर्तमान युग के उन महापुरुषों में से एक थे, जिन्होंने सत्य अहिंसा और त्याग, तपस्या को अपने जीवन का विशिष्ट अंग बना कर उसका सजीव उज्जवल आदर्श प्रस्तुत किया और मानव जगत को जीवन के वास्तविक लक्ष्य की ओर प्रस्थान करने का दिव्य सन्देश दिया।
आप उन महात्माओं की श्रेणी में सादर स्मरणीय थे। जिन्होंने ध्यानावस्थित हो, उपनिषदों की कठिन समस्याओं की विकट ग्रन्थि को खोल उन पर अनुपम व्याख्यानों का उल्लेख कर पवित्र भारत भूमि में योगबल के प्रभाव से आत्मज्ञान की पीयूष धारा के श्रोत को प्रवाहित किया है। आप जैन धर्म के महत्व का एक केन्द्र स्थान थे। आपका जीवन साधुता का सच्चा आदर्श था। जैन धर्मानुरागियों के सिवाय अन्य भद्र पुरुषों के भी आप श्रद्धास्पद और परम पूजनीय थे। आप के उच्च भावों की घोषणा भारत वर्ष के अतिरिक्त विलायत में गूंज उठी थी। आपका निर्मल यश: स्त्रोत भारतवर्ष की पवित्र भूमि में बड़े ही आनन्द से बह रहा है । जैन शास्त्रों के जैसे
आप पारदृष्टा थे। वैसे ही आप वेद-वेदांग, दर्शनादि शास्त्रों के पूर्ण मर्मज्ञ थे। आपके उपदेश - जैसे सत्य और सारगर्भित थे वैसे ही आप का चारित्र भी निर्मल और निष्कलंक था। परोपकारी महात्माओं की श्रेणी में आप प्रथम स्मरणीय है। आपके सदुपदेश से धर्म पतित सहस्त्रश: स्त्री पुरुषों का उद्धार हुआ है आपकी मधुर वक्तृता का प्रभाव कुछ अनूठा ही था। आपके उपदेश अमृतधारा में, जिसे एक बार भी स्नान करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उसे अनुभव होगा कि इस धारा में स्नान करने से मन के मलिन भाव किस तरह दूर हो जाते थे। अन्त:करण कैसे नवजात अमंद सुगन्ध युक्त पुष्प की तरह खिल जाता था । हृदय की कुटिल ग्रन्थि किस तरह खुल जाती थी। कुटिलता ओर नीचता के पर्वत कैसे चूर चूर हो जाते थे । श्रावण-भादो की वर्षा के अनन्तर वृक्ष जैसे हरी हरी नवीन कोपलें धारण किये हुए एक अनोखी मनमोहिनी छटा वाले दिखाई देते हैं, ऐसे ही आप के उपदेश रूप अमृत-धारा में स्नान कर श्रोताओं की आन्तरिक दशा स्वच्छ, कोमल और रसमयी हो जाती थी। उपदेशामृत से सेवन किया हुआ हृदय कमल प्रफुल्लित हो उठता था।
चित्त भूमि में शुद्ध भावों के पौधे उगने-बढ़ने और फलने लग जाते थे। सत्य है, वह
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श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ
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