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७. ताम्बे का एक त्रिशूल ८. ताम्बे के छेद युक्त ५ सिक्के ९. पंचरत्न क्रय करने हैं (पंचरत्न की अंगूठी)
पूजन सामग्री:अष्ट द्रव्य, दुर्वा, नागकेसर, मिढलफल, कुंकुम, सुगन्धित पुष्प, चावल २ किलो, बादाम २५ नग, पान १५ नग, नारियल ५ नग, लाल सिल्क कपड़ा सवा मीटर, कांच नग १, पकवान, पूजा की सुपारी नग ५, पूरी हल्दी की गांठे नग ७, आदि
प्रक्रिया:रवि- पुष्य के शुभ योग में किसी अच्छे जानकार विद्वान द्वारा प्रथम कुण्ड का भूमि पूजन, दशदिग्गपाल पूजन, नवग्रह पूजन, धरणेन्द्र पद्मावती पूजन, पार्श्वनाथ पूजन के अनन्तर कूर्मचक्र, विघ्न विनाशक मातृका यन्त्र, स्वस्तिक बीसा यन्त्र, नाग नागिन (धरणेन्द्र-पद्मावती), पार्श्वनाथ यन्त्र, पार्श्वनाथ चरण पादुका आदि की प्राण प्रतिष्ठा की क्रिया को करवाकर निम्न क्रम से कलश को तैयार करना है :
प्रथम स्वच्छ किये हुए ताम्र कलश में केशर से स्वस्तिक अंकित कर उस पर कूर्मचक्र की स्थापना कर तदोपरी विघ्न विनाशन मातृकाक्षर यन्त्र की स्थापना करनी है। उस पर स्वस्तिक बीसा यन्त्र की स्थापना कर उसके दायीं तरफ नाग (धरणेन्द्र) तथा बायीं तरफ नागिन (पद्मावती) स्थापना करनी है। नाग-नागिन के बीच स्टेण्ड वाला विघ्न विनाशक शान्तिदाता पार्श्वनाथ यन्त्र को खड़ा स्थापित करना है। तदनन्तर यन्त्र के सम्मुख पार्श्वनाथ चरण पादुका, त्रिशूल, ५ सुपारी, ७ हल्दी की गांठे, पंचरत्न, छेदवाले पांच सिक्के आदि रखकर २१ बार णमोकार मन्त्र बोल श्वास स्थिर कर कुएं के शुद्ध जल से कलश को भर देना है। भरे हुए कलश के ऊपर पान रख ढक्कन लगाकर उस पर नारियल रखकर, लाल सिल्क के कपड़े से कलश बांध देना है। कलश के गले में मिढल फल, नागकेसर कांच को बांधना है। कलश को सुगन्धित पुष्पों की माला पहनाकर एक पाट पर स्थापित कर पुन: प्रगटप्रभावी पार्श्वनाथ, धरणेन्द्र पद्मावती की विधिपूर्वक पूजन कर कुण्ड में एक किलो चावल का स्वस्तिक बनाकर २१ बार णमोकार मन्त्र के मनोयोग पूर्वक गिन श्वास स्थिर कर उस मन्त्रपूत कलश को कुण्ड में स्थापित कर देना है। कलश स्थापित हो जाने के पश्चात् कुण्ड के नाप की शिला से उसे ढक देना है। यह सुख समृद्धि कारक तन्त्र मन में
धर्मायतन, आवास तथा कारोबार : एक सुख समृद्धि कारक तन्त्र
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