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विचारवंतों के दृष्टि में आज जो समस्त भारत वर्ष में १००-१२५ मुनि दिखाई दे रहे हैं वह सब उन्हीं के विहार करने के कारण हो सका। आचार्य महाराज को देखते ही मेरी रुची बदल गई और सोचता था ऐसा कब समय आवे कि 'मैं भी इस प्रकार सम्यक् चारित्र धारण करूँ'।
आत्मा जाग्रत हो गई और निर्णय कर लिया कि संसार असार है और एक आत्म दृष्टि ही लाभदायक है। इसके शिवाय मोक्ष की प्राप्ति नहीं।
मैं इन शब्दों के साथ आचार्य श्री के चरणों में श्रद्धांजली अर्पित करता हूं। श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर
आचार्य कल्प जेलरोड, आरा (बिहार)
मुनि सुमजिसागरजी महाराज जे भवजलधि जिहाज प. पूज्य श्री आचार्यवर!
आपने इस पंचमकाल में भी लुप्त-प्राय दिगम्बर निग्रंथ लिंग को, जो कि मोक्ष का साक्षात् कारण है उत्तर भारत, दक्षिणभारत में प्रसार कर महान् उयकार किया हैं। जिससे मुमुक्षुओं को पावन मुनी दर्शन का तथा आहारदान धर्मोपदेश आदि का लाभ हो रहा है। तथा आपके उपदेश से प्रभावित होकर व्रती महाव्रती रत्नत्रय संस्कारों प्राप्त कर इस भव तथा परभव को सुधार रहे हैं । यह अपूर्व देन परम पूज्य प्रातःस्मरणीय १०८ आचार्य शांतिसागरजी की ही है।
हम लोगों की सद्भावना है कि वो पवित्रात्मा साक्षात् तीर्थकर होकर अनेकों को मोक्ष पथपर लगाकर शाश्वत लक्ष्मी का लाभ करें।
हम उनके पुनीत चरणों में शुभ श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं । मधुवन
१०८ मुनि सुव्रतसागर (हजारी वाग)
[संघ पू. १०८ आ. विमलसागरजी महाराज ]
आत्मध्यान मग्न ___ इस युग के एक आदर्श साधु गुरुवर १०८ आचार्य श्री शान्तिसागरजी ने आजीवन उत्तम साधना की और अन्तिम दिनों में यम सल्लेखना ग्रहण करके एक महत्त्व पूर्ण आदर्श उपस्थित किया है। आंखों की ज्योति क्षीण होनेपर ही संयम की विराधना न हो इस उद्देश से उचित समय पर सल्लेखना ग्रहण की तथा अन्तिम समय तक अत्यन्त भक्तिपूर्वक आत्मध्यान में लीन रहते हुए इस नश्वर देह का त्याग किया। ऐसे महान योगी के लिये मैं बारम्बार भावभक्तिपूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
मुनि श्री वीरसागर (आ. विमलसागरजी के शिष्य)
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