________________
६२
आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ आचार्य शांतिसागरजी महाराज संसार समुद्र से तैरने के लिये पोत के समान थे । संयम रूपी बगीचे को हरा भरा रखने के लिये सुयोग्य माली के समान थे। रत्नत्रय के जोहरी थे। चारित्र के चक्रवर्ति थे । शिष्यों को सुयोग्य चारित्रवान् बनाने के लिये सुयोग्य कलावान मानसविज्ञ थे । जन्म मरण के रोगों को मिटाने के लिये चतुर वैद्य के समान थे।
आपने अनेक मुनिरत्नों को जन्म दिया। आचार्य वीरसागरजी, श्री चंद्रसागरजी महाराज,. सुधर्मसागरजी, कुन्थु सागरजी, नेमिसागरजी, पायसागरजी इत्यादि ।
शिष्योत्तम आचार्य श्री वीरसागरजीने आ. महावीरकीर्तिजी, आचार्य शिवसागरजी, आचार्य कल्पश्रुतसागरजी, आचार्य धर्मसागरजी इ. अनेक त्यागीयों को मोक्षमार्ग में लगाया। प्रशिष्य आचार्य शिवसागरजी ने श्री ज्ञानसागरजी, श्री अजितसागरजी इत्यादि अनेक शिष्यों को मोक्षमार्ग में लगाया । आचार्य धर्मसागरजी ने मुनि पुष्पदन्तसागरजी आदि अनेक त्यागीयों को संसार जंगल से बचाया ।
देखो रत्नों की खान से रत्न ही पैदा होते हैं।
वर्तमान में भी चाहे त्यागी वर्ग हो या गृहस्थ वर्ग हो आचार्य श्री के बताये मार्गपर चलेंगे तो. अपनी अपनी आत्मा का अन्वेषण कर पाएगें। नहीं तो इस संसाररूपी मरुस्थल में प्यासे मरना पडेगा,. इस महान जंगल में भटकना पडेगा, इस समुद्र में डूबना पडेगा, इन कर्मरूपी चोरों से स्वभावरूपी धन को लुटाना पडेगा। कैसा कल्याण होगा ?
आज का मानव त्याग मार्ग से कोसों दूर जा रहा है, रात में खानपान करना, होटलो में अभक्ष्य का खानपान करना । ज्यादा क्या कहे ? अहिंसा के पुजारी आदि का नाम धराकर अंडे-मांस-शराबादि का भी प्रयोग चालू हो गया। परिवार नियोजन कराना, वेषभूषादि में विदेशियों की नकल करना । कैसे कल्याण होगा?
धर्मलाभ के पूर्व में भी इतनी धर्माभिमुखता तो होनी ही चाहिए । आचरण शुद्धि विचारशुद्धता के लिए पोषक ही होती है । अंतर्मुख दृष्टि बनेविना सम्यग्दर्शन की प्राप्ति कैसे होगी ? सम्यग्दर्शन के बिना. सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र कैसे होगा ?
ज्यादा क्या कहूं ? आचार्य श्री गुणों के भंडार थे, उनका गुणानुवाद गान में मेरी शक्ति नहीं। उनका आत्मा शीघ्र ही मनुष्य पर्याय पाकर भव्य जीवों को मोक्षमार्ग दिखाते हुए मोक्ष पधारे।
___ मैं आचार्य श्री के चरणों में श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव न करता हूँ।
ॐ जय आचार्य श्री शांतिसागरजी महाराज का नाम लेते ही आत्मा प्रसन्न हो जाती है। हम छोटे थे तो एक दफा मुरेना में आचार्य श्री के दर्शनार्थ पहुंचे। वहां बडी दूर दूर से लोग आये थे । महाराजजी की शास्त्र सभा में हजारों जनता धर्मलाभ उठाती थी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org