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श्रद्धांजलि
पूज्य प्रातःस्मरणीय धर्म व जगदुद्धारक युगपुरुष भारत संत गुरुवर्य आचार्य चारित्र चकवर्ति स्व. श्री शांतिसागरजी महाराज के चरणों को कोटी कोटी प्रणाम और हृदय कुसुमांजलि कृतज्ञता-पूर्वकार्पण । दोहा- “सब धरती कागज करूं, । लेखनी सब बन राय ॥
सप्त समंदर स्याही करूं, । गुरु गुण लिखे न जाय ॥१॥ वात्सल्यार्णव ! “ यत्कृपालवमात्रेण । मूढस्त्यजति मूढताम् ॥
पांतु वो गुरवो शांता । तापत्रयनिवारकाः ॥१॥ आपने गजपंथा पर दयार्द्रता से पंचाणुव्रत देकर मेरी आत्मा को पुनीत किया है ।
दीनोद्धारक !! श्री सिद्धक्षेत्र कुंथलगिरी पर सल्लेखना के १५ वे उपवास के दिन वात्सल्यता से सप्तम ब्रम्हचर्य प्रतिमा को शुभ आशीर्वाद पूर्वक देकर पावन किया है, यह अनुग्रह भव भव में इस दीन अनाथ के साथ रहेगा। असार दुःखमयी संसार का स्वरूप बतला कर आत्मकल्याण के सुखद मार्ग पर दृढ कराकर “बाबांनो भिऊ नका, संयम धारण करा" इस अमृतमयी अभयवाणी से ही, व आप के व्रतारोपण संस्कार से ही, महाव्रत के बीज चित्त में दृढ हुये। और “ महान विद्वानतपस्वी, स्वपरकल्याणक बालब्रह्मचारी, निष्काम दीनबंधु, बाहुबली (कुंभोज) अतिशय क्षेत्रोद्धारक, अनेक गुरुकुल संस्थापक निरीह श्रमणोत्तम प्रा. पूज्य श्री गुरुदेव १०८ समंतभद्राचार्य के पाद मूल में भगवती दीक्षा का पात्र आपने ही मुझे बनाया । सदा के लिये सुखद व शाश्वत् आनंददायी ऐसे शिव मार्ग में मुझ को राही किया।
"मुझसे हैं आपको अनेक । आपसे हैं मुझको ही एक" ॥
"सदहा तेरे लाखों में । मैं भी हूँ एक दीवाना ॥" गाथा- गुरुभक्ति संजमेणय, तरंति संसार सायरं घोरं ।
छिण्णंति अठुकम्म, जम्म ण मरणं ण पावंति ॥ १॥ हे महान करुणार्णव युग पुरुष !!! आप फिर एक बार तीर्थंकर अवस्था में अवतरित होकर अनंत भव्यों का उद्धार करते हुये इस अनाथ को भी तारो! तब तक आपकी चरण स्मृति रहे !! इस मंगल भावना से हे भारत संत, परमपावन पुराणपुरुष, मुनिधोद्धारक उग्रतपस्वी, दिगंबर जैनाचार्य! आपके चरण स्मृति में आपके ही चरणोंपर कृतज्ञतापूर्वक कोटी कोटी प्रणाम करके हृदय कुसुमांजलि सादर श्री सिद्धश्रुताचार्य भक्ति से त्रिकरण शुद्धि से, नम्रता से अर्पण करता हूँ। ॐ॥
“प्रा. गुरुदेव श्री १०८ समंतभद्राचार्य" विनयावनत शिष्य
"मुनि आर्यनंदी"
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