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________________ (४) स्मृतिग्रंथ में संस्था का परिचय, अहवाल, इतिहास के साथ पू. आचार्यश्री का जीवनचरित्र, उनके संस्मरण तथा श्रद्धांजलि तो अनिवार्य ही थी। किन्तु इसके अतिरिक्त उस ग्रंथ का ऐसा प्रारूप हो की समाज को कुछ लाभ मिले इस विचार से स्मृतिग्रंथ की योजना कार्यान्वित करने के लिए श्री. पं. मोतीचंदजी गौतमचंद कोठारी, पं. जिनदासजी शास्त्री, पं. ब्र. माणिकचंद्रजी चवरे तथा पं. धन्यकुमार भोरे के साथ विचार विमर्श हुआ। उक्त दोनों संस्थाओं के निर्माण में आचार्यश्री का यह प्रधान उद्देश था कि जिनवाणी असली रूप में सुरक्षित हो, संशोधन के नाम पर उसकी कहीं हानि न हो, उसका अंतरंग प्राण और प्रेरणा जिवन्त रहें, अनधिकारी व्यक्तियों द्वारा जिनवाणी अन्यथा रूप में प्रदर्शित न हो। इस दृष्टि से महान् प्राचीन दिगम्बर जैन आचार्यों का जो साहित्य उपलब्ध है उसके दृष्टिकोण तथा प्रेरणा का शोध लेकर उन ग्रंथों पर 'विषयपरिचय, दृष्टिकोण तथा उसका निर्वहण' इस रूप में अभ्यासपूर्ण निबंधों का संकलन एकमेव अनोखा तथा उपयुक्त कार्य होगा। __ ऐसे निबंध एकही विद्वान के द्वारा लिखे जा सकते हैं किन्तु संपूर्ण दिगम्बर जैन साहित्य का गाढ अध्ययन के साथ ही निर्विवाद पूरा अधिकार प्राप्त हो ऐसी व्यक्ति ढूंढना, तथा एकही व्यक्तिद्वारा २५-३० निबंध लिखे जाना कठिन काम था। स्मृतिग्रंथ तो विशिष्ट कार्यमर्यादा के भीतर प्रकाशित करना था। इस दृष्टि से प्रमुख दिगंबर जैन ग्रंथ चुने गये, उनपर अधिकृत रूप में लिख सके ऐसे विद्वानों की सूची बनाई गई, उनसे संपर्क स्थापित करके स्मृतिग्रंथ की रूपरेखा तयार हुई। हमें प्रसन्नता है की विद्वज्जनों ने हमारे इस कार्य में पूरा पूरा सहयोग दिया जिसके फलस्वरूप आज यह ग्रंथ समाज के सन्मुख है। __ ग्रंथ का प्रारूप तैयार करने से प्रकाशित होने तक हमें श्री. ब्र. माणिकचंद्रजी जयकुमार चवरे, अधिष्ठाता महावीर ब्रह्मचर्याश्रम जैन गुरुकुल, श्री. माणिकचंद्र भिसीकर अधि. बाहुबली विद्यापीठ तथा श्री. पं. धन्यकुमार गंगासा भोरे, कारंजा इनका जो योगदान मिला उसके बारे में मेरे भाव प्रगट करने के लिए शब्द नहीं हैं। चारचार आठआठ दिन उनके साथ हमारी बैठक हुई, चर्चा हुई, उन्होंने ही प्रेस कॉपी बनवाने में अपना अमूल्य समय दिया, छपवाना, प्रूफरीडिंग, सजावट आदि जिम्मेदारी आखिर तक निभाई । जिनवाणी के तथा जैन साधु के प्रति प्रगाढ श्रद्धा से उन्होंने यह सब किया। वे हमें 'काका' कहते हैं। हमने जो बोझ उनपर डाला उन्होंने उसका पूरा निर्वाह किया। काका अपने भतीजों का कैसा आभार माने । हमें गौरव तथा अभिमान है हमारे इन भतिजोंपर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012022
Book TitleAcharya Shantisagar Janma Shatabdi Mahotsav Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
PublisherJinwani Jirnoddharak Sanstha Faltan
Publication Year
Total Pages566
LanguageHindi, English, Marathi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size14 MB
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