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पच्चीस साल का अहवाल ग्रन्थप्रकाशन का कार्य संस्था के ध्रुवनिधी का ज्यों व्याज मिलता है उससे चलता है। व्याज का उत्पन्न सालीना नउ या दस हजार का है। ध्रुवनिधी सरकारी बैंकों में Fixed Deposit के रूप में रक्खा है। संस्था का बॅलन्स शीट तथा अन्य खास बातें टिप्पणी में दी हैं।
आचार्य महाराज ने परमपावन भगवती जिनदीक्षा ग्रहण करके आत्मोद्धार के साथ समीचीन दिगम्बर साधुपरंपरा का पुनरुज्जीवन किया। उनके पवित्र और असाधारण व्यक्तित्व के कारण उनके उपदेश और आदेश से श्रीधवल, श्रीजयधवल तथा श्रीमहाधवल सिदान्त ग्रन्थों के ताम्रपट बनाकर उनकी स्थायी सुरक्षा की योजना कार्यान्वित हुई। प्राचीन आचार्यों के महान् ग्रन्थों का प्रचलित हिंदी भाषा में अनुवाद होकर श्रावकों के स्वाध्याय के लिए जिनमंदिरों में उनका निःशुल्क वितरण हुआ। बृहन्मूर्ति की स्थापना से समस्त विश्व के सामने जैन संस्कृति का वीतरागता का आदर्श उपस्थित हुआ। इस प्रकार यह समाज प. पू. आचार्यश्री का हमेशा कृतज्ञ रहेगा की जो प्रगट करने के लिए शब्द भी असमर्थ हैं।
संस्था का कार्य प. पू. आचार्यश्री के आशीर्वाद से तथा समाज के सहयोग से, विद्वानों की सहाय्यता से अविच्छिन्न निराबाध चालू है। उन सब भाईयों और विद्वानों के तरफ हृदय से आभार प्रदर्शित करके यह अहवाल समाप्त करता हूं।
वालचंद देवचंद शहा, मंत्री स्वस्ति श्री जिनसेन भट्टारक, अध्यक्ष श्री १०८ आ. शांतिसागर दि. जै. जीर्णोद्धारक संस्था
मोतीलाल मलुकचंद दोशी, मंत्री चंदुलाल तलकचंद शहा, वकील, अध्यक्ष श्रुतभंडार तथा ग्रंथ प्रकाशन समिति
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