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पच्चीस साल का अहवाल
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१००० रु. या अधिक दान देनेवाले संस्था के सदस्य हो ऐसी योजना बनाई गई । कार्यपद्धति भी निश्चित हुई। सर्वप्रथम बटर पेपर पर ग्रंथ छपवाकर रासायनिक प्रक्रिया से ताम्रपत्र पर अंकित करवाना तथा मूल ग्रंथ की पांच-पांचसो प्रतियां छपवाना, एक मुद्रित प्रत १००० रु. या अधिक देनेवाले दातारों को भेटरूप में देना, तीर्थक्षेत्रोंपर एक एक प्रत रखना, ऐसा महाराज श्री के आदेशानुसार निर्णय हुआ ।
कानुन के अनुसार संस्था रजिष्टर करने के लिए समिति का गठन हुआ । सुमिति में श्री. वालचंद देवचंद, श्री. बालचंद देविदास चवरे, वकील, अकोला तथा श्री. माधवराव लेले, वकील, सोलापुर सदस्य थे । एकमत से संस्था की नियमावली तयार की गई तथा सोसायटीज रजिष्ट्रेशन अॅक्ट २१-१८६० के अनुसार संस्था का दि. २५-५-१९४५ को अ. नं. १३७२ में रजिष्ट्रेशन संपन्न हुआ ।
सिद्धान्त ग्रंथ प्राचीन तथा महत्त्वपूर्ण होने से उनके ताम्रपत्र भी शुद्ध और साफ होना जरूरी था । उपरोक्त सिद्धान्त ग्रंथों में श्रीधवल ७०००० श्लोक प्रमाण, जयधवल कषायपाहुड सहित ८०००० श्लोक प्रमाण तथा महाधवल ४०००० श्लोक प्रमाण है । उन्हीं ग्रंथों की एक हस्तलिखित प्रत पं. गजपती शास्त्रीजी ने बहुत दिन पहिले मुडबिद्री से लाई थी और उसकी प्रतिलिपि सोलापूर में थी । ताम्रपटका काम चालू करने के पूर्व सोलापूर के प्रतिलिपि का मूल ताडपत्र की प्रति के साथ मिलान करना आवश्यक होने से वह प्रतिलिपि मुडबिद्री भेजी गई । इस कार्य में स्व. पं. लोकनाथ शास्त्रीजी का अमूल्य सहयोग प्राप्त हुआ । तथापि कार्य संतोषजनक नहीं हुआ । मूल ताडपत्रों के साथ उक्त हस्तलिखित प्रति का मेल न बैठने के कारण ग्रंथ संशोधन में बहुतसी त्रुटियां रह गई । दिन प्रतिदिन मूल ताडपत्र जीर्ण होते जायेंगे, तथा अगर वे ताडपत्र सुरक्षित रखने का समुचित प्रबन्ध न हो तो उनका दर्शन भी दुर्लभ हो जावेगा, इस हेतु से मूल ताडपत्रों के फोटो लेकर रखने का निर्णय हुआ । पू. आचार्यश्री के आदेश से ब्र. बोधिचंद्रजी मुडबिद्री गये और वहां से श्री. चारुकीर्ति भट्टारक महाराज तथा विश्वस्तों से संमति प्राप्त की । पश्चात् ताडपत्र के फोटो ( Negative) लिए गये । प्रथमबार ताडपत्रके फोटो ६x२" साइज में लाए गये । इस महत्त्व पूर्ण कार्य में ब्र. बोधिचंद्रजी, श्री भट्टारक चारुकीर्तिजी, वहां के ट्रस्टीगण, पं. लोकनाथ शास्त्री, पं. वर्धमान शास्त्री, सोलापुर, बंबई के झारापकर स्टुडिओ के संचालक झारापकर बंधु आदि महाजनों का अच्छा सहयोग प्राप्त हुआ यह धन्यवादपूर्वक साभार नमुद करना जरुरी है ।
तदनंतर मूल कन्नड ताडपत्र ग्रंथराज की स्थायी सुरक्षा हो इसलिए आचार्य महाराज ने मूल ताडपत्र का भी ताम्रपट करने का आदेश दिया । इस कार्यपूर्ति के लिए फिर से मंत्री बालचंद देवचंद, पं. वर्धमान शास्त्री सोलापुर, झारापकर बंधु तथा उन के कर्मचारी स्टफ मुडबिद्री गये । वहाँ पंधरा दिन ठहर कर धवला के तीन प्रति श्रीजयधवल, श्रीमहाधवल तथा उसके बिना नंबर फटे हुए पन्नों के भी १५”×१२" साइज में फोटो लिए गए। उनमें से श्री धवल के एक प्रति का Positive करके २३" Enlarge किया । उसका ताम्रपत्र करने का कार्य शुरू हुआ । किन्तु ताम्रपत्रपर ताडपत्र के अक्षर कोई स्पष्ट कोई अस्पष्ट निकलने लगे । आधे आधे भाग का भी ताम्रपट करने का प्रयास किया । किन्तु फोटो Enlarge करनेपर भी अपेक्षित सफलता नहीं मिली । तब यह महान् कार्य स्थगित हुआ । तथापि फोटो के रूप में
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