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:४५७ : आत्मसाधना में निश्चयनय की उपयोगिता
आत्मसाधना में निश्चयनय की उपयोगिता
4 श्री सुमेरमुनिजी
जैन-दर्शन में निश्चयनय और व्यवहारनय की चर्चा काफी विस्तार व गहराई से की गई है। दोनों नयों को दो आँखों के समान माना गया है। कोई व्यक्ति व्यवहारनय को छोड़कर केवल निश्चयनय से अथवा निश्चयनय का परित्याग कर केवल व्यवहारनय से वस्तु को जानना-समझना चाहे तो वह समीचीन बोध से अनभिज्ञ ही रहेगा। दोनों में से किसी एक का अभाव होगा तो एकाक्षीपन आ जायेगा । अतः वस्तु को यथार्थ रूप से समझने के लिए दोनों नयों का सम्यग्बोध होना नितान्त जरूरी है। दोनों नयों का अपनी-अपनी भूमिका पर पूरा-पूरा वर्चस्व है। इस बात को हम जितनी गहराई से समझेंगे उतनी ही वह अधिक स्पष्ट हो जायेगी और बोध से भावित हो सकेंगे।
निश्चयनय की परिभाषा
आपके मन-मस्तिष्क में एक प्रश्न खड़ा हो रहा होगा कि निश्चयनय और व्यवहारनय क्या है ? तो लीजिए पहले इसी प्रश्न का समाधान प्राप्त करें। निश्चयनय वह है-जो वस्तु को अखण्ड रूप में स्वीकार करता है, देखता व जानता है । जैसे आत्मा अनन्त गुणों का पुंज है, अनन्त पर्यायों का पिण्ड है, निश्चयनय उसे अखण्ड रूप में ही जानेगा-देखेगा। मतलब यह है कि किसी भी द्रव्य में जो भेद की तरफ नहीं देखता, जो शुद्ध अखण्ड द्रव्य को ही स्वीकार करता है, वह निश्चयनय है। निश्चयनय में विकल्प नहीं दीखेंगे, संयोग नजर नहीं आएंगे। निश्चयनय संयोग की ओर नहीं झांकता। उसकी दृष्टि में पर्याय नहीं आते। वह न शुद्ध पर्यायों की ओर झांकता है और न अशुद्ध पर्यायों की ओर ही।।
एक उदाहरण के द्वारा समझें। एक पट्टा-तख्त है। निश्चयनय इसे पट्टे के रूप में देखता है। इस नय की आँख से यह पट्टा ही नजर आएगा। पट्टे में कीलें भी हैं, पाये भी हैं, और लकड़ी के टकडे भी हैं. पर निश्चयनय इन संयोगों या विभेदों को नहीं देखेगा। वह पटे को अखण्ड पटे के रूप में ही देखेगा।
एक पुस्तक है। निश्चयनय की दृष्टि से जब हम पस्तक को देखेंगे तो हमें पस्तक दी नजर आएगी। क्योंकि निश्चयनय केवल पुस्तक के रूप में ही उस पुस्तक को स्वीकार करेगा। ऐसे देखा जाय तो उस पुस्तक में अलग-अलग अनेक पन्ने हैं। इन पन्नों पर अक्षर भी अंकित हैं. काली स्याही का रंग भी है। ये सब कुछ पुस्तक के अंग होते हुए भी निश्चयनय पुस्तक के इन सब अवयवों को नहीं देखता। उसकी दृष्टि अवयवी-पुस्तक की और ही रहेगी।
निश्चयनय संयोगों को नहीं देखता एक बात और समझ लें। वह यह है कि निश्चयनय की निगाह संयोगों पर नहीं जाती। जैसे पानी में मैल है, उसमें गन्दगी या मिट्टी मिली हुई है। निश्चयनय जल को जल के रूप में ही देखेगा। वह जल के साथ में मिली हुई गन्दगी, मिट्टी या मैल को नहीं देखता । वह जब भी देखेगा, जल को ही देखेगा । वह यह भी नहीं देखेगा कि यह जल किस जलाशय, नदी या समुद्र का है । यह खारा है या मीठा । निश्चयनय की आँख पर्यायों या संयोगों को कतई नहीं देखती ।
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