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: ४३७ : वैराग्य उपदेश प्रधान पद
श्री जैन दिवाकर- स्मृति- ग्रन्थ
वैराग्य उपदेश प्रधान पद
१. दया का फल
(तर्ज - या हसीना बस मदीना, करबला में तू न जा ) दया की बोवे लता, शुभ फल वही नर पाएगा । सर्वज्ञ का मंतव्य है, गर ध्यान में जो लाएगा ||र || आयु दीर्घ होता सही, अरु श्रेष्ठ तन पाता वही । शुद्ध गोत्र कुल के बीच में, फिर जन्म भी मिल जाएगा ॥ १ ॥ घर खूब ही धन धान्य हो, अति बदन में बलवान हो । पदवी मिले है हर जगह, स्वामी बड़ा कहलाएगा ||२|| आरोग्य तन रहता सदा, त्रिलोक में यश विस्तरे । संसार रूप समुद्र को आराम से तिर जाएगा || ३ || गुरु के परसाद से, यू' 'चौथमल' कहता तुम्हें । दया रस भीने पुरुष के, इन्द्र भी गुण गाएगा ||४|| २. फूट की करतूत (तर्ज - पनजी मुंडे बोल)
फूट तज प्राणी रे २, आपस की फूट है या दुख दानी रे ||टेर ॥ पड़ी फूट गयो बदल विभीषण, रावण बात नहीं मानी रे । सोना की गई लंका टूट, मिट्टी में मिलानी रे ॥१॥ कौरव पाण्डव के आपस में जब या फूट भराणी रे । लाखों मनुष्य गये मारे युद्ध में हुई नुक्सानी रे ||२|| पृथ्वीराज जयचंद राठौड़ के, हुई फूट अगवाणी रे । बादशाह ने कियो राज, दिल्ली पे आनी रे ॥३॥ फूट बिके या कैसी सस्ती, फूटे सर नहीं पानी रे । फूटे मोती की देखो, कीमत हलकानी रे ॥४॥ संप जहाँ पर मिले सम्पदा, फूट जहाँ पर हानी रे । ऐसी जान के बुद्धिमान, तज कुत्ता तानी रे ॥५॥ अस्सी साल में रामपुरे, मण्डी बाजार में आनी रे । गुरु प्रसादे 'चौथमल' यूँ कहे हित वानी रे ॥६॥ ३. पीड़ा - नाशक - जाप
(तर्ज- चैतन चेतो रे दश बोल जगत में मुश्किल मिलिया रे ) सदा सुख पावो रे, चौविस जिनन्द को इण विधि ध्यावो रे | टेर श्री पद्म प्रभुजी का जाप कियां रवि पीड़ा टल जावे रे। चन्द्र पीड़ा हरे चन्दा प्रभुजी, जो गुण गावे रे | १ |
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