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श्री जैन दिवाकर.म्मति-ग्रन्थ
प्रवचन कला : एक झलक : ४०६ :
सैकड़ों व्याख्यानी साधु हैं जिनके व्याख्यानों को यदि लिपिबद्ध किया जाय तो प्रतिवर्ष विपुल परिमाण में प्रवचन साहित्य सामने आ सकता है। प्रसिद्ध वक्ता के रूप में विश्रत श्री जैन दिवाकर जी महाराज उन प्रभावकारी व्याख्यानी संतों में हैं जिनकी वाणी आज भी जन-जन की हृदय-वीणा को झंकृत किये हुए है। सैकड़ों ही नहीं हजारों की संख्या में उन्होंने प्रवचन दिये हैं । पर अद्यावधि उनका जो प्रवचन साहित्य प्रकाश में आया है, वह 'दिवाकर दिव्य ज्योति' नाम से २१ भागों में संकलित-सम्पादित है।
संक्षेप में आपके प्रवचन-साहित्य की विशेषताओं को इस प्रकार रक्खा जा सकता है
(१) आपका अध्ययन विस्तृत, अनुभूति गहन और व्यापक लोक सम्पर्क होने से आपके प्रवचनों में लोक, शास्त्र व परम्परा का अद्भुत समन्वय मिलता है। उनमें एक ओर सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यग्चारित्र, गुणस्थान, सम्यक्त्व, कर्म, तप, पाप-पुण्य जैसे विषयों पर गूढ़ दार्शनिक विवेचन मिलता है तो दूसरी ओर जीवन में व्याप्त कुसंस्कारों और समाज में व्याप्त कुरीतियों पर कटु प्रहार भी किया गया है । दार्शनिक विवेचन में मुनिश्री वर्ण्यविषय के भेद-प्रभेदों के उल्लेख के साथ उसकी तलस्पर्शी विवेचना करते हुए जीवन-व्यवहार और युगीन समस्याओं के साथ उसका प्रभावकारी ताल-मेल बैठाते हैं । सार्वजनिक सत्य के साथ युगीन सत्य का सम-सामयिक संदर्भ जुड़ने से विवेचन में विशेष मार्मिकता और जीवंतता आ जाती है।
(२) व्यापक दृष्टिकोण, उदार चित्तवृति और व्यक्तित्व की निर्मलता के कारण आपके प्रवचनों में सभी धर्मों और धर्म-ग्रन्थों का सार-तत्त्व समाहित रहता है। कहीं आचारांग, उत्तराध्ययन, दशवकालिक, ठाणांग, भगवती, प्रश्न-व्याकरण और उपासकदशांगसूत्र की गाथाएं प्रयुक्त हैं तो कहीं कुरान, बाईबिल, पंचतंत्र, हितोपदेश, उपनिषद्, पुराण, रामायण और महाभारत की कथाएँ व्यवहृत हैं तो कहीं सेठ, ब्राह्मण, राजा, किसान, मजदूर, लकड़हारा, धोबी, मोची, तेली, माली आदि से सम्बद्ध लोक-कथाओं, दृष्टान्तों और प्रसंगों का समावेश है । मुनिश्री किसी शास्त्रीय सैद्धान्तिक विषय को बड़ी गहराई के साथ उठाकर, विभिन्न धर्मों में उसके महत्व का निरूपण कर, किसी प्रसिद्ध कथानक तथा छोटे-मोटे विविध जीवन-प्रसंगों और लोक दृष्टान्तों के माध्यम से वर्ण्यविषय को इस प्रकार आगे बढ़ाते हैं कि मूल आगमिक भाव स्पष्ट होता हुआ, हमारे वर्तमान जीवन की समस्याओं एवं उलझनों का भी समाधान देता चलता है।
(३) आप प्रभावशाली वक्ता होने के साथ-साथ सफल कवि और सरस गायक भी थे। संस्कृत, प्राकृत, अरबी, फारसी, उर्दू, राजस्थानी, गुजराती, हिन्दी आदि भाषाओं के आप विद्वान् थे। इतनी विद्वत्ता होते हुए भी आपके प्रवचनों में भाषागत पांडित्य का प्रदर्शन न होकर तद्भव शब्दावली का ही विशेष प्रयोग होता था। आपके प्रवचन आलंकारिक बनाव शृंगार से परे अनुभूति की गहराई, अन्तःस्पर्शी मार्मिकता, ज्ञात-अज्ञात कवियों की पदावली, लोकधुनों, विविध राग-रागिनियों, संस्कृत-श्लोकों, प्राकृत-गाथाओं, हिन्दी-दोहों, उर्दू-गजलों और मार्मिक सूक्तियों से युक्त हैं । स्वयं कवि होने के कारण आप अपने प्रवचनों में अधिकांशत: स्व-रचित कविताओं का ही उपयोग करते थे। बचपन में लोक-धर्मी नाट्य परम्परा-तुर्रा-कलंगी सुनने के कारण आपकी गायकी में विशेष आकर्षण रहता था। लोकनाट्य शैली का आपकी काव्य-रचना पर प्रभाव होने से उसमें स्वरों की उच्चता और बन्ध की बुलन्दगी का सहज समावेश हो गया है।
(४) जीवन शुद्धि संस्कारशीलता व सामाजिक परिष्कार का स्वर आपके प्रवचनों में सदैव
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