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श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ
व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणें ३८४ :
आपके जीवन के साथ ऐसी कई घटना जुड़ी हुई है यदि उनका वर्णन किया जाये तो शायद एक पुस्तक तो उन घटनाओं की बन सकती है।
एकता व संगठन के अग्रदूत
समाज की एकता को सही रूप में जिन्होंने चाहा उनमें जैन दिवाकर चौथमलजी महाराज साहब का नाम सादर लिया जा सकता है। महाराजश्री के द्वारा किये गये प्रयत्न निश्चय ही अधिक समय तक स्थाई रूप से नहीं रह सकें । इस दीपक का प्रकाश जब तक इस समाज पर था वह समाज प्रकाशित रहा, लेकिन आज यह हाल हो गया है कि छोटे-छोटे साधु समाज में फूट डालने का कार्य कर अपनी सत्ता स्थापित कर रहे हैं और बड़े मौन साधे बैठे हैं। यह बात निश्चित है कि उनके मन एकता की इच्छा जरूर है लेकिन सफल प्रयास नहीं कर पा रहे हैं ।
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महाराजश्री जहाँ भी गये वहाँ समाज की इस फूट को मिटाने का पूर्ण प्रयास किया । आपने समाज की एकता प्रयास राजस्थान में सबसे अधिक किया । वि सं० १९७२ में ब्यावर और अजमेर में, आपने अथक प्रयास किया एकता स्थापित करने का प्रयत्न किया। समाज की फूट से दुःखी थे, उनका कहना था
दो भाई आपस में लड़-भिड़कर अपना बटवारा करना चाहे और अपनी माता के टुकड़े करना चाहे तो आप उन्हें क्या कहेंगे ? यही कहेंगे कि इनसे बढ़ कर कपूत दुनिया में और कौन हो सकता है जो अपनी माता के भी खण्ड करने को तैयार हो गये हैं। आप जाति को भी माता मानते हैं, फिर घड़े बन्दी करके अपनी जाति माता के टुकड़े कर डालना क्या उसके पूतों का कर्तव्य
आपके जीवन्त चरणों से जब मालव भूमि धन्य हुई तो आपकी वाणी की गरिमा को सुनकर उज्जैन श्रीसंघ जो कई भागों में बँटा हुआ था वह एक हो गया । आपके प्रयासों से उज्जैन में दिगम्बर - श्वेताम्बर सभी ने एक साथ महावीर जयन्ति मनायी ।
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महाराजथी हमेशा जैन समाज, साधु संस्था एवं देश के सामाजिक ढांचे के परिवर्तन का प्रयास करते रहे। उन्होंने अपना समय समाज के उद्धार में बिताया। उनकी वाणी इतनी गम्भीर एवं प्रभावशील थी कि यदि कोई व्यक्ति एक बार सुन ले तो वह प्रभावित होकर उनके बताये मार्ग पर
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चलता था उनकी वाणी का प्रभाव ही था जो उनके पश्चात् आज खटीक वीर वाल के नाम से जाने जाते हैं एवं जैन समाज का प्रमुख अंग माने जाते हैं । वे ४० वर्ष पूर्व खटीक के रूप में जाने जाते ये आज उनका जीवन सुखी एवं सम्पन्न है उन्होंने आज भी उस महान् गुरु को नहीं भूला है जिसने एक नई क्रान्ति उनके जीवन में ला दी थी।
जैन दिवाकरजी महाराज ने सामाजिक स्थिति को बहुत करीब से देखा, उन्होंने सामाजिक जीवन में फैली कुरीतियों को मिटाने में पूर्ण सहयोग दिया। हरिजन जाति के लोगों को समाज के सदस्यों के बराबर आसन पर बिठाया । उन्होंने कभी छुआछूत पर विश्वास नहीं किया ।
आपके प्रयत्नों से बलि प्रथा, वेश्या नृत्य आदि भी बन्द हो गये जिसने भी उनसे शपथ ली उसके लिए उनका कहना था " त्यागी पुरुष को कभी भी त्यागी हुई बात को नहीं अपनाना चाहिए यह तो वमन को फिर से भक्षण करना है ।"
१ दिवाकर दिव्य ज्योति भाग ६ पृष्ठ १८७
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