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:३८३ : राजनीतिक एवं सामाजिक परिप्रेक्ष्य में
वि० सं० १९६६ में नाई (उदयपुर) में जैन दिवाकरजी महाराज पधारे, वहाँ तीन-चार हजार भील एकत्र हुए तथा आपके ओजस्वी व्याख्यान को सनकर हिंसा त्याग की प्रतिज्ञा ली।
खटीक जाति द्वारा अपने पैतृक-धंधे का त्यागना खटीक जाति वर्तमान में कसाई जाति ही मानी जाती है वह अपना लालन-पालन बकरों को काट कर, उनका मांस बेचकर करते थे, लेकिन वह आर्थिक दृष्टि से निर्बल ही थे; उनका जीवन भी शान्तिमय नहीं था। गुरुदेव के प्रवचनों को सुनकर उन्होंने अपने पैतृक धन्धे का त्याग किया। आपके इस प्रयत्न का यह अमृतफल भीलवाड़ा, सवाई माधोपुर, कोटा आदि के आसपास के खटीकों को प्राप्त हुआ और अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर इस कार्य को त्यागा । आपके कुशल प्रयत्नों एवं उपदेशों से प्रभावित होकर खटीकों ने शराब का भी त्याग किया। इस संदर्भ में एक प्रसंग है
___आर्थिक दृष्टि से हर वस्तु के दो पहलू होते हैं--एक को लाभ होता है, तो दूसरे को हानि । खटीक तो सधर गये किन्तु शराब के ठेकेदार को हानि हई। उससे आबकारी इंस्पेक्टर भी प्रभावित हुआ। वह महाराजश्री के पास गया एवं अनाप-सनाप बोलने लगा। कहने लगा-आप सन्त को किसी का धंधा बन्द करा देना कहाँ तक उचित है।"
गुरुदेव ने कहा कि शराब पिलवाना और किसी को तन-धन से बरबाद करना कहां तक उचित है ? आप स्वयं सोचिये कि एक के पेट के लिये हजारों का पेट काटना कहाँ तक उचित है, वह इंस्पेक्टर निरुत्तर हो गया और चला गया।
महाराजश्री के जीवन की एक चाह यह थी कि हर दलित वर्ग उन्नति करें। भारतीयों में एक प्रवृत्ति है कि वंश-परम्परा का त्याग नहीं करते । वह रूढ़िवादी है चाहे उनके वंशज ने कोई गलत नियम बनाये, नियम को गलत समझते हुए भी वह रूढ़िवादी बने रहते हैं। जब-जब भी जिस व्यक्ति ने रूढ़िवादिता को तोड़ने का प्रयत्न किया उसे समाज ने तिरस्कृत किया । इसलिये भयभीत व्यक्ति समाज के भय से अपने पैतृक व्यवसाय को छोड़कर दूसरा व्यवसाय अपनाने का प्रयत्न नहीं करता है और जब इनको किसी महान पुरुष द्वारा परित्याग करने का आग्रह किया गया तो इनको लगता कि इस पुरुष का स्वार्थ है । यही बात जैन दिवाकरजी महाराज के साथ भी हुई। जब वह खटीकों को अहिंसामय प्रवचन देते तो उस खटीक समाज के पाखंडियों ने डट कर विरोध किया और अपने समाज के लोगों को बहकाते हुए कहा कि यह लोग तुम्हारा धर्म-भ्रष्ट कर
सांच को आंच नहीं, यही कार्य जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज का था। उन्होंने उन लोगों की निन्दा ध्यान में नहीं रखते हुए अपने मानव-धर्म के कार्य में जुटे रहें।
ऐसी ही घटना जैन दिवाकर श्री चौथलमजी महाराज के साथ जुड़ी हुई है। महाराजश्री के प्रवचन को सुनकर ६० गांवों के चमारों ने शराब छोड़ दी लेकिन यह बात जब ठेकेदारों को पता चली उन्होंने अधिकारियों से शिकायत की। अधिकारियों ने अपनी आतंकमय प्रवृत्ति के भय से चमारों को शराब पीने को विवश किया लेकिन चमार लोग जानते थे कि यह कार्य अपने जीवन को नष्ट कर देगा इसलिए उन्होंने किसी के भय के आगे झुकने से इंकार कर दिया ।
१ जैन दिवाकर, पृष्ठ ६५
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