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श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ ।।
व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणें : ३६६ :
५. राम मुद्रिका ७. जम्बू चरित्र ६. चंपक चरित्र ११. श्रीपाल चरित्र १३. भगवान महावीर का दिव्य सन्देश १५. प्रदेशी राजा चरित्र १७. अर्हद्दास चरित्र १६. सुपार्श्व चरित्र २१. चतुर्थ रत्नमाला २३. कृष्ण चरित्र २५. वैराग्य जैन स्तवनावली २७. हरिबल चरित्र २६. जैन गजल बहार (पांच भाग) ३१. मनोहर पुष्प ३३. ज्ञान गीत संग्रह ३५. भगवान महावीर का आदर्श-जीवन
६. आदर्श रामायण ८. हरिश्चन्द्र चरित्र १०. धर्मबुद्धि चरित्र १२. सती अंजना और वीर हनुमान १४. पार्श्वनाथ चरित्र १६. अष्टादश पाप-निषेध १८. महाबल मलया चरित्र २०. धन्ना चरित्र २२. त्रिलोक सुन्दरी चरित्र २४. दामनखा चरित्र २६. लघु जैन सुबोध गुटका २८. भगवान नेमिनाथ चरित्र ३०. लावनी संग्रह (दो भाग) ३२. मुक्ति पथ ( " " ) ३४. जैन सुबोध गुटका
___ इनके अतिरिक्त आपके प्रवचनों के संकलन 'दिवाकर दिव्य ज्योति' के नाम से २० भागों में प्रकाशित हुए हैं। 'निर्ग्रन्थ प्रवचन' अनेक आगमिक सिद्धान्तों, सूक्तियों का संग्रह ग्रन्थ है, जो विद्वानों और जन-साधारण को प्रेरणादायक है। उक्त विपुल साहित्य में चरित्र ग्रन्थों की प्रधानता है, फिर भी हम सुविधा के लिए उसे निम्नलिखित वर्गों में विभाजित कर सकते हैं
१. जीवन प्रेरणा साहित्य-सुक्तियों के संकलन. उपदेशप्रद एवं भक्ति सम्बन्धी कृतियों को इस वर्ग के अन्तर्गत किया जा सकता है। जैसे चतुर्थ रत्नमाला, वैराग्य जैन स्तवनावली, ज्ञान गीत संग्रह आदि।
२. धार्मिक साहित्य-इसके अन्तर्गत उनकी वे कृतियाँ आती हैं, जो जैन सिद्धान्तों का विवेचन करती हैं, यथा-भगवान महावीर का दिव्य सन्देश आदि ।
३. गीत साहित्य-इस वर्ग में फुटकर प्रासंगिक गीतों, भजनों, लावणियों, गजल संग्रहों का समावेश होता है।
४. चरित्र साहित्य-पुराण प्रसिद्ध जैन महापुरुषों के कथा ग्रन्थ । इनको पढ़ने से उन महापुरुषों की जीवन-गाथा का ज्ञान होने के साथ कर्तव्य की प्रेरणा मिलती है । इस वर्ग में संकलित ग्रन्थों की संख्या सर्वाधिक है।
५. लोक साहित्य-इस वर्ग में उनके समग्र प्रवचन साहित्य का समावेश किया जा सकता है। क्योंकि जनता की भाषा में उसके कर्तव्य का बोध कराया है। प्रसंगोपात्त सैद्धान्तिक और दार्शनिक चर्चायें भी इस साहित्य में उपलब्ध हैं।
६. तुलनात्मक साहित्य-'भगवान महावीर का आदर्श-जीवन' इस वर्ग में ग्रहण होता है। इसमें सिर्फ भगवान महावीर की जीवनी के अतिरिक्त भारत की प्राचीन संस्कृति, विद्याओं, कलाओं आदि का उल्लेख करते हुए अर्वाचीन विचारधारा का समाज-जीवन के साथ तुलनात्मक विवेचन किया गया है। साथ ही तत्व-ज्ञान एवं धर्म के मूल तत्वों पर प्रकाश डाला है ।
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