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|| श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ ।
व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणें : ३०४ :
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करवाया जा सकता है । इस परम्परा को भी मुनि श्री चौथमलजी महाराज ने अच्छे रूप में आगे बढ़ायी। उनकी जीवनी में हम यह पाते हैं कि अनेक राजाओं, ठाकुरों, जागीरदारों, जमींदारों को उन्होंने धर्मोपदेश देकर उनको व उनके परिवार को मांसाहार मदिरापान आदि से मुक्त किया और उनके राज्य में जीवहिंसा निषेध की घोषणा करवायी । उदयपुर महाराणा आदि उनके काफी भक्त बन चुके थे। राजा हो चाहे रंक, जो पापों में लिप्त हैं वे पतित की श्रेणी में ही आयेंगे और उनका सुधार उद्धार करना अवश्य ही बहुत महत्व का कार्य है। जिसे मुनि श्री चौथमलजी महाराज ने काफी अच्छे रूप में किया ।
हिन्दुओं में तो दयाधर्म का प्रचार करना फिर भी सहज है क्योंकि जीवदया के संस्कार उन्हें जन्मघुटी की तरह मिलते रहे हैं। पर किसी मुसलमान को प्रभावित करके मांसाहार छुड़ाना या पशुहत्या निवारण करना अवश्य ही एक कठिन कार्य है। मुनिश्री चौथमलजी महाराज ने कई मुसलमानों को भी अपना मक्त बनाया। श्री केवल मुनिजी लिखित जैन दिवाकर ग्रन्थ के पृष्ठ १२० में कुछ महत्वपूर्ण ऐसे प्रसंग दिये हैं जिन्हें पढ़कर उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व एवं कुशल वक्तृत्व का पता चलता है। इस ग्रन्थ में लिखा है कि खान साहब सेठ नजर अली अलाबख्स मिल के मालिक सेठ लुकमान भाई ने ५ हजार का नुकसान सहन कर एक दिन के लिए तपस्वी मयाचन्दजी महाराज की तपस्या के उपलक्ष्य में आरम्भ-समारम्भ बन्द रखा। इतना ही नहीं जिस समय मोहर्रम का त्यौहार पड़ रहा था इस त्यौहार के ३० दिन तक मुसलमानों में वहाँ जातिमोज होता था जिसमें मांस-भक्षण उनकी परम्परानुसार चलता था। दो दिन तो बीत ही गये थे, पर जैन मुनि की तपस्या की बात सुनकर लुकमान भाई ने कहा कि मुझे क्या मालूम था कि कोई जैन साधु तपस्या कर रहे हैं, नहीं तो दो दिन भी मांसाहार न करवाता, अब तीसरे दिन तो मीठे चावल ही बनवाऊँगा, सात्विक भोजन ही कराऊंगा । इस्लाम धर्म के अनुयायी होते हुए भी उनके ये शब्द मुनि श्री चौथमलजी महाराज के प्रवचनों के प्रति श्रद्धा के सूचक हैं। उनके इस कार्य से १०० बकरों को अभयदान मिला । उज्जैन में यह अहिंसा का प्रचार व पशुओं को अभयदान का ऐतिहासिक कार्य आपश्री के प्रयत्न से ही संभव हुआ था। देवास में आपका प्रवचन ईदगाह में भी हुआ। प्रवचन से प्रभावित होकर काजी साहब ताज्जुबद्दीन ने मांस, शराब, परस्त्रीगमन आदि का त्यागकर दिया । और भी अनेक स्थानों में मुसलमान आपके प्रवचनों में आकर आपके प्रवचनों को सनकर बड़े प्रभावित होते व कई तो आकर आपके भक्त बन गये।
बदनौर में जोधा खटीक व जीवनखाँ मुसलमान ने जीवनपर्यन्त मांसभक्षण तथा जीवहिंसा त्याग का नियम लिया और भी अनेक मुसलमान भाइयों ने अहिंसावृत्ति अपनायी।
वेश्याओं को समाज में बहुत पतित माना जाता है उनका भी मुनि श्री चौथमलजी महाराज ने उद्धार किया। आपके व्याख्यानों को सुनकर 'मगनी' तथा 'बनी' नाम की वेश्याओं ने आजीवन शीलव्रत पालने की प्रतिज्ञा की और 'सणगारी' नाम की वेश्या ने एक पतिव्रत का संकल्प लिया। अनेक स्थानों में उस समय वेश्यानत्य का प्रचार था उसे आपने बन्द करवाया व वेश्याओं के कलंकित जीवन को बदल डाला । जोधपुर में कई पातरियों ने आपके उपदेश सुनकर अपने घणित पेशे को बिल्कुल तिलांजलि दे दी।
साधारण मनुष्य की अपेक्षा कैदियों का जीवन अधिक पतित होता है क्योंकि वे किसी बड़े अपराध के कारण ही सजा पाकर जेलों में जाते हैं। उनको उपदेश देकर सुधारना और उनका
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