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|| श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ ।
व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणे : २६६ :
उद्भवित हुआ। प्रसिद्ध वक्ता तो उस समय भी बहत थे और आज भी बहत हैं, लेकिन वे सिर्फ वक्ता ही नहीं थे-वे थे वाणी के उद्गीय ब्रह्मनाद । संगीत और भाषण का जहाँ उत्कट सम्मिश्रण हो, उसे हम सिर्फ वक्ता या प्रसिद्ध वक्ता कहें, यह स्वयं के शब्दों को लज्जित करना है। मैं कहूंगामुनिश्री चौथमलजी वास्तविक ब्रह्मनाद का उदघोषक प्रख्यात संगीतज्ञ, कविराज तथा व्याख्यान वाचस्पति व्याख्याकार थे।
मुनि श्री चौथमलजी महाराज जैनियों और उनके भक्तों के ही नहीं थे-वे विश्व मानव के थे। उनकी जन्म शताब्दी के अवसर पर हम चाहते हैं कि भगवान महावीर के संघ का एक कीतिस्तम्भ स्थापित करें। यह कीर्तिस्तम्म पत्थर का नहीं, कार्य रूप अमर याद का स्थापित करें। हमारा शताब्दी मनाना तभी सार्थक होगा जबकि हम उनकी दिव्य वाणी और उनके दिव्य उद्घोष का उपयोग कर, वीर शासन के सैकड़ों टुकड़ों में बँटे इन साम्प्रदायिक अंगों को संगठित करने का कार्य हाथ में लें। परिचय :
[जैन समाज के एक निर्भीक चिन्तक, शिक्षाशास्त्री और तन-मन-धन से सेवार्थ समर्पित । मेवाड़ की अनेक शिक्षण-संस्थाओं के प्रतिष्ठाता; दो वर्ष पूर्व स्वर्गवासी]
तप का महत्व (तर्ज-या हसीना बस मदीना, करबला में तू न जा) यह कर्म दल को तोड़ने में, तप बड़ा बलवान है। काम दावानल बुझाने, मेघ के समान है।टेर।। काम रूपी सर्प कीलन, मंत्र यह परधान है। विघन घन तम-हरण को, तप जैसे भानु समान है ॥१॥ लब्धि रूपी लक्ष्मी की, लता का यह मूल है। नन्दिषेण विष्णु कुवर का, सारा ही बयान है ॥२॥ वन दहन में आग है, और आग उपशम मेघ है। मेघ हरण को अनिल है, और कर्म को तप ध्यान है ॥३।। देवता कर जोड़ के, तपवान के हाजिर रहे। वर्धमान प्रभु तप तपे, उपना जो केवलज्ञान है ॥४॥ गुरू के प्रसाद से, करे चौथमल ऐसा जिकर । आमोसही ऋद्धि मिले, यही स्वर्ग सुख की खान है ॥५॥
-जन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज
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