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:२५५ : श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम
मामा गई कि मारा प्रयामः । श्री जैन दिवाकरः स्मृति-ग्रल्थ
श्री जैन दिवाकर - स्मृति-ग्रन्थ ।
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प्रसादमासाद्य मनेरनारतं विधीयेत येन नति विधानतः । सुखं स मुक्त्वेह महीतलेऽखिलं परत्रचावाप्स्यति सौख्य सम्पदम् ।। पाकर कृपा मुनि की सतत जो रीतिपूर्वक प्रार्थना । करते सकल सुख भोग कर परलोक में सख सम्पदा ॥५४।।
मुनेः श्री चौथमल्लस्य पञ्च पञ्चाशवात्मिका । घासीलालेन रचिता स्तुतिर्लोक हितावहा ॥ घासीलाल मनि रचित ये पढे विनय जो कोई। सकल सुखों को प्राप्त कर लोक हितावह होइ ॥५५॥
दिवाकर श्रद्धांजलि
श्री भंवरलाल दोशी, बम्बई जैसे तपता सूर्य है, वैसे चमके आप। नष्ट किया अज्ञानतम, काटा जन संताप ।। दिवस रात को एकका, दिया सदा उपदेश । वाणी अमृत तुल्य थी, मेटा जन मन क्लेश । कवि रवि विद्वान थे, श्रमणों की थे शान । रटे तुम्हारा नाम जो, पूर्ण हो अरमान ।। चौ दिशा में आपने, किया धर्म-प्रचार । थकना तो सीखे नहीं, जग-वल्लभ अणगार ।। महावीर के नाम की, ध्वज फहराकर आप । लगा दिए सुमार्ग पर, करते थे जो पाप ।। जीवन ज्योति बुझकर, हुवा स्वर्ग में वास । मगर तुम्हारा नाम ये, देगा सतत प्रकाश ।। हाथ जोड़कर चरण में, आते दानव देव । रात अवस्था में कभी, करते थे वो सेव ।। जहाँ पड़ी थी चरण रज, हुआ मंगलानन्द । कीर्ति यश फैलाकरे, जब तक सूरज चन्द ।। जय-विजय हो आपकी, वन्दन शत-शत बार। यही दास की आश है, करदो भव से पार ।।
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