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श्री जैन दिवाकर स्मृति-ग्रन्थ ।।
श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : १६२:
श्रद्धा के सुमन. :-%88
श्री दिनेश मुनि परमादरणीय जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज का स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। यह आल्हाद का विषय है। दिवाकरजी महाराज स्थानकवासी समाज के एक वरिष्ठ सन्तरल थे। यद्यपि मैंने उनके दर्शन नहीं किये हैं, पर श्रद्धेय सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी महाराज एवं साहित्य मनीषी श्री देवेन्द्र मुनिजी से उनके सम्बन्ध में सुना है और दिवाकरजी महाराज के सम्बन्ध में प्रकाशित पुस्तकें पढ़ी हैं। इसके आधार से मैं यह निस्संकोच लिख सकता हैं कि वे एक वरिष्ठ सन्त थे। वे सच्चे दिवाकर थे। उनका प्रभाव राजा से लेकर रंक तक, हिन्दु से लेकर मुसलमान तक, साक्षर से लेकर निरक्षर तक समान रूप से था। उनके सत्संग को पाकर अनेक व्यक्तियों के चरित्र में निखार आया । अनेकों ने हिंसा और दुर्यव्सन जैसे जघन्य कृत्यों का परित्याग कर एक आदर्श-जीवन जीने की प्रतिज्ञाएँ ग्रहण की। अनेकों ने मानवता का भव्य रूप जन-समस्त के समक्ष प्रस्तुत किया कि जिन्हें लोग घृणा की दृष्टि से देखते थे वे भी पवित्र जीवन जीकर सच्चे मानव बन गए ।
आज भी जन-मन के सिंहासन पर जैन दिवाकरजी महाराज आसीन हैं। लोग उन्हें श्रद्धा से स्मरण करते हैं। उन्होंने जिनशासन की अत्यधिक प्रभावना की । ऐसे महान् प्रभावक महापुरुष के श्रीचरणों में मैं श्रद्धा के सुमन समर्पित करता है।
(१)
आपदाओं में कभी ना डगमगाये। साधना संयम के तुमने गान गाये । गगन में चमका "दिवाकर" जब । धरा ने वन्दना के गीत गाये ॥
(२) जिन्दगी के जहर को अमृत बनाकर तुम पी गये हो। शूल में भी फूल जैसे मुस्कुराकर तुम गये हो। मौत बेचारी तुम्हें क्या छू सकेगी। लाखों दिलों में प्यार बनकर बस गये हो ।।
चंदनमल 'चाँद' प्रधान मन्त्रीभारत जैन महामण्डल, बम्बई। सम्पादक'जैन जगत'
एकता और प्यार का पैगाम लाये। धर्म के व्यवहार से जन-मन पे छाये। साम्य, समता, सौम्य के आदर्श तुम। युग-युगों तक कैसे कोई भूल पाये ।।
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