SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपनी बात भी जागी कि उस महापुरुष की स्मृति में एक सुन्दर श्रेष्ठ स्मृति ग्रन्थ का प्रकाशन भी किया जाय । इसी श्रद्धा भावना की सम्पूर्ति स्वरूप यह स्मृति ग्रन्थ भी तैयार हो गया है। यद्यपि आजकल अभिनन्दन ग्रन्थ तथा स्मृति ग्रन्थ प्रकाशन का एक रिवाज या शौक-सा हो गया है, इस कारण कुछ लोग इसे महत्त्व कम देते हैं । इसी कारण मेरे अन्तर मन में भी काफी समय तक विचार मन्थन चलता रहा कि स्मृति ग्रन्थ प्रकाशित किया जाय या नहीं ? अनेक श्रद्धालु जनों व विद्वानों का आग्रह रहा कि श्री जैन दिवाकरजी महाराज का कृतित्व और व्यक्तित्व बहुत ही विराट् था । इस शताब्दी के वे एक महान पुरुष थे। उन्होंने अपने जीवन के ७३ वर्षों में जो कुछ किया, वह पिछले सैकड़ों वर्षों में नहीं हुआ। अहिंसा, दया और सदाचार प्रधान जीवन की जो व्यापक प्रेरणा उनके कृतित्व से मिली है वह इतिहास का अद्भुत सत्य है। भौतिक या आर्थिक सहयोग के बिना सिर्फ उपदेश द्वारा हजारों हिंसाप्रिय व्यक्तियों की हिंसा छडाना, व्यसन ग्रस्त व्यक्तियों को सिर्फ उपदेश सुनाकर व्यसन मुक्त बना देना एक बहत ही अद्भुत कार्य था। शासकों, अधिकारियों, व्यापारियों और सामान्य प्रजाजनों को एक समान रूप से प्रभावित कर जीवनपरिवर्तन की प्रेरणा देना सचमुच में इतिहास का अमर उदाहरण है । कहा जा सकता है कि श्री जैन दिवाकरजी महाराज ने एक नये युग का प्रवर्तन किया था। उनके युग को हम 'जैन दिवाकरयुग' कह सकते है । और ऐसे युग-प्रवर्तक महापुरुष के कृतित्व-व्यक्तित्व के मूल्यांकन स्वरूप किसी स्मृति ग्रन्थ का निकालना सचमुच में आवश्यक ही नहीं, उपयोगी भी होता है। और होता है हमारी कृतज्ञता का स्वयं कृतज्ञ होना। मैंने स्मृति ग्रन्थों की चालू परम्परा से थोड़ा-सा हटकर चलना ठीक समझा । आजकल अभिनन्दन ग्रन्थ या स्मृति ग्रन्थ जो भी निकलते हैं, उसमें मूल व्यक्तित्व से सम्बन्धित बहुत ही कम सामग्री रहती है और अन्य विषयों की सामग्री की अधिकता व प्रधानता रहती है। इसका कारण यह भी हो सकता है कि मूल व्यक्तित्व की सामग्री अल्प हो, या उसकी व्यापकता एवं सम सामयिक स्थितियों में उपयोगिता कम हो ! किन्तु श्री जैन दिवाकर जी महाराज के विषय में तो ऐसा नहीं है । उनके जीवन से सम्बन्धित सामग्री प्रचुर है। और धर्म, समाज तथा राष्ट्र के लिये किये गये उनके महनीय प्रयत्नों का लेखा-जोखा तो अपार है। मानवता के कल्याण की कथाएँ तो उनकी कई स्मति ग्रन्थों की सामग्री दे सकती फिर उनकी उपेक्षा क्यों ? वास्तव में तो उन्हीं का मूल्यांकन हमें करना है । उन्हीं के व्यक्तित्व की किरणों के बहुरंगी आलोक में आज की जागतिक जटिलताओं का समाधान खोजना है अतः मैंने परम्परागत शैली को छोड़कर मूल व्यक्तित्व को प्रधानता देने की दृष्टि रखी। स्मति ग्रन्थ में विषयान्तर करने वाले अनेक श्रेष्ठ लेख उपेक्षित करने पड़े हैं। हो. 'चिन्तन के विविध बिन्दु' में कुछ उपयोगी सामग्री अवश्य देदी है, ताकि पाठ्य सामग्री में कुछ विविधता का रस भी मिश्रित हो सके । प्रस्तुत स्मति ग्रन्थ में हमारे विद्वान सम्पादक मंडल ने श्री जैन दिवाकरजी महाराज के व्यक्तित्व व कृतित्व के अनेक स्वरूपों को, अनेक दृष्टियों से प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। हमारा विचार था प्रत्यक्ष में जिन्होंने साक्षात्कार किया है उनकी श्रद्धांजलियाँ दी ही जायें, उनके सिवाय बहुत से लोग जो उनके निकट सम्पर्क में नहीं आये हैं, वे उनके जीवन और विचार को पढ़े तथा उस पर अपने दृष्टिकोण से लिखें। इस हेतु "श्री जैन दिवाकर स्मति निबन्ध प्रतियोगिता' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy