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युगप्रधान श्रोजिनचन्द्रसरि --
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ने श्रीजिनराजसूरिजी के करकमलों से बड़ेधूमधाम से करवायी। सं० सोमजी की स्वधर्मी-भक्ति भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है । इनके व इनके रूपजी के सम्बन्ध में श्रीवल्लभ उपाध्याय ने एक प्रशस्ति काव्य की संस्कृत में रचना की है । खेद है कि वह पूर्ण रूप से उपलब्ध नहीं हो सका, प्राप्त अंश राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर से प्रकाशित हुआ है। कविवर समयसुन्दर ने भी भावपूर्ण सं० सोमजी वेलि की रचना की है।
सूरिजी के अन्य भक्त श्रावकों ने भी जिनशासन के उत्कर्ष में बड़ा योगदान दिया। बीकानेर के लिगा गोत्रीय सतीदास ने शत्रुजय पर विमलवसही में "खरतर-जय-प्रासाद"जिनालय निर्माण कराया एवं भत्ता तलहटी के सामने सतीवाव भी उन्हीं की बनवायी हुई है।
गिरनारजी पर दादा साहब की देहरी बनाकर गुरुदेवों के चरण विराजमान करनेवाले बोथरा परिवार व अन्य अनेक श्रावकों में लौद्रवा तीर्थोद्धारक थाहरूसाह, महेंवा में जिनालय निर्माता कांकरिया कमा, जूठा कटारिया, मेडता के चौपड़ा आसकरण तथा बीकानेर, अहमदावाद आदि के अनेक धर्मप्रेमी श्रावकों का उल्लेख यहां सीमित स्थान में संभव नहीं।
ثبت نام و اراده ای است در این دوربین بازیگرانی هستم و نه از انسان نے مارا میری ناب از بدن را که در کشوری با ما را به به نام پرستار و کردار ادا کی ہیں ۔ ان مامان داده به نام بانی برای کناره ها
ها برای تهران را تهدید می کند. من با
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بیان این جزم و برای ریاست را در مسیر برجر
عمودی و پاسداری اور معناداری و درمانی به مردم
अष्टाह्निकामादि शाही फरमान नं० १
यु० जिनचन्द्रसूरिजी को सम्राट अकबर जो अष्टाह्निका के अमारि का फरमान दिया था उसकी प्रतिकृति सामने दी जा रही है। इस फरमान का सारांश यह है कि - "शुभचिन्तक तपस्वी जिनचन्द्रसूरि खरतर हमारे पास रहते थे। जब उनकी भगवदभक्ति प्रकट हई तो हमने उनको बड़ी बादशाही की महरवानियों में मिला लिया और अपनी आम दया से हुक्म फरमा दिया कि आषाढ़ शुक्ल ६ से १५ तक कोई जीव न मारा जाय और न कोई आदमी किसी जानवर को सतावे । असल बात तो यह है- जब परमेश्वर ने आदमी के बास्ते भांति-भांति के ।
पदार्थ उपजाये हैं तब वह कभी किसी जानवर को दुख न दे और अपने पेट को पशुओं का मरघट न बनावे ।"
"बड़े-बड़े हाकिम जागीरदार और मुसद्दी जान लें कि हमारी यही मानसिक इच्छा है कि सारे मनुष्यों और जीव-जन्तुओं को सुख मिले जिससे सब लोग अभन चैन से रह कर परमात्मा की आराधना में लगे रहें।"
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